Monday, January 22, 2018

कहानी का अंत

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ऐसा पहली बार था कि सुष्मिता किसी के जीवन पर आधारित कहानी लिख रही थी| अनमोल ने खुद ही एकदिन सुष्मिता को अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा था "तुम तो लेखिका हो, मेरे जीवन पर एक उपन्यास लिख डालो"

"उपन्यास लिखने के लिए तो न जाने कितना इन्तजार करना पड़ेगा और कौन जाने आने वाले सालों में आपके जीवन में कौन सा मोड़ आ जाए | हाँ, बहरहाल एक कहानी जरूर लिखने की कोशिश रहेगी" सुष्मिता ने अनमने तरीके से कहा था |

डेढ़ बरस बाद एकदिन सुष्मिता को यह वाकया याद आया और उसने अनमोल की कहानी को जस का तस पन्ने पर उकेरना शुरू कर दिया | पिछली कई मुलाकातों  से जो कुछ भी जान पायी थी, कहानी में वो सब कुछ शामिल किया | कई पन्ने लिख लेने के बाद सुष्मिता को लगा कि कहानी के साथ न्याय करने के लिए उसे अनमोल के जीवन की घटनाओं को करीब से जानना होगा| 

अनमोल सुष्मिता को शादी का प्रस्ताव दे चूका था और सुष्मिता के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था | जब भी सुष्मिता उससे कहती कि उसे कहानी पूरा करने के लिए उससे कई बातें पूछनी हैं तो अनमोल एक ही जवाब देता "जब तक तुम मेरे प्रस्ताव का जवाब नहीं दोगी, कहानी कैसी पूरी होगी| तुम्हारा जवाब ही कहानी को पूरा करेगा"

एक शाम सुष्मिता जब अस्पताल में डॉक्टर दिखाने के क्रम में अपनी बारी का इंतजार कर रही थी, अनमोल उसके ठीक बगल में बैठा था | वह सुष्मिता का साथ देने  के लिए ही वहाँ गया था | सुष्मिता को लगा कि वक़्त का सही उपयोग अनमोल से उन तमाम सवालों के जवाब पा लेने में है, जिन्हें जाने बिना कहानी को दिशा दे पाना मुश्किल था| उसने अनमोल से पहला ही सवाल किया था कि अनमोल के चेहरे के भाव बदल गए और वह कह उठा "रहने दो न | क्या वो घटनाएँ इतनी अच्छी थीं जिनका बारम्बार ज़िक्र करने का मन हो | कई लोगों ने मुझे भला-बुरा सुनाया था और मैं चुप रह गया था| अब मन नहीं करता उन घटनाओं को याद करने का"

सुष्मिता ने आगे कुछ पूछना मुनासिब नहीं समझा | वह खुद जीवन के झंझावातों से होकर गुजर चुकी थी और समझ सकती थी कि आपबीती सुनाने का मतलब हर बार उन पलों  से होकर गुजरना होता है जिन्हें अमूमन कोई याद नहीं करना चाहता | सुष्मिता ने उसी पल अनमोल से कहा "ठीक है| मैं फिर अपनी कल्पना से कहानी को कोई नाटकीय मोड दूँगी और जब आप कहानी पढ़ेंगे तो एकबार आपको भी पता न चलेगा कि कहानी आपके जीवन पर आधारित है|"

अनमोल ने सहमति में सर हिलाया था | इस घटना के कई दिनों बाद सुष्मिता ने कहानी को नाटकीय रूप देते हुए कई काल्पनिक घटनाओं को कहानी में जोड़ा और कहानी समाप्त की | कहानी का अंत लिखते हुए उसने अनमोल की बजाय अपने पाठकों का ख्याल रखा | कहानी समाप्त होते ही उसने सबसे पहले अनमोल को यह जानकारी दी और साथ ही यह भी बताया कि घटनाओं की पूरी जानकारी के अभाव में उसने कहानी का फ़िल्मी अंत दिया है | अनमोल कहानी का कुछ अंश पहले पढ़ चूका था और अब पूरी कहानी पढ़ने के लिए उत्सुक था | अगली सुबह उसने कहानी पढ़ते ही सुष्मिता से पूछा "कहानी का जो अंत तुमने लिखा है, क्या वह सच है?"

"अरे नहीं ! मैंने तो पहले ही कहा था कि फ़िल्मी अंत है| कल्पनाओं की स्याही ने जो उकेरा, लिख डाला" कहते हुए सुष्मिता समझ गयी कि अनमोल को कहानी का अंत पसंद नहीं आया | कहानी के अंत में सुष्मिता ने अपने किरदार को किसी और के साथ दिखाया था |  सुष्मिता ने फोन किया तो अनमोल ने काट दिया |

सुष्मिता कुछ समय से अनमोल के प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देने का विचार कर रही थी पर कहानी पढ़कर अनमोल ने जैसी प्रतिक्रिया दी, सुष्मिता ने मन ही मन सोचा कि काश ! उसने कहानी को अधूरा ही छोड़ दिया होता | यह भी सोचा कि जो इन्सान एक काल्पनिक कहानी पर ऐसी प्रतिक्रिया दे सकता है, वह जब उसके जीवन की सच्चाईयों से रु-ब-रु होगा, तब कैसी प्रतिक्रिया देगा| 

अनमोल की प्रतिक्रिया सोचते हुए सुष्मिता सुबह से शाम तक परेशान रही | रात के लगभग दस बज रहे थे| एक अप्रत्याशित प्रश्न ने उसे धक्के देकर कई अन्य अनुत्तरित प्रश्नों के पते पर पहुँचा दिया और फिर उसके मन के पेड़ पर उदासियों के पंछी घर बनाने लगे | इस स्थिति से उबरने के लिए वह बाहर पार्क में गयी| उसने सुना था कि चलते-चलते कहीं पहुँच ही जाते हैं, कुछ ऐसा ही सोचकर पार्क के जॉगिंग ट्रेक पर चली जा रही थी| तभी उसके बेटे ने कहा कि उसे झूला झूलना है| फिर क्या था, माँ-बेटा दोनों झूला झूले| झूला झूलते हुए भी न जाने सुष्मिता क्या सोच रही थी कि तभी उसके बेटे ने ध्यान दिलाया कि झूले में पीछे जाते हुए पाँव भी पीछे की ओर मोड़ना होता है| सच! वह तो भूल ही गई थी!! उसे बचपन के दिन याद आ रहे थे और वह आँखें मूँदकर झूल रही थी| अचानक आँखें खुली तो देखा ऊपर आसमान तारों से भरा था| उसे लगा कभी - कभी सर उठाकर आसमान की ओर भी देख लेना चाहिए| उसने अपने जेहन पर जोर डाला कि उसने आखिरी बार कब फुर्सत से आसमान में तारों को निहारा होगा| बहुत सोचने पर याद आया पाँच बरस पहले रात के समय जिम कॉर्बेट पहुँचने पर सबसे पहले ध्यान तारों पर ही गया था| अभी वह प्राकृतिक नजारों में खोई ही थी कि उसका ध्यान सप्तर्षि मंडल पर गया, जो उसे आसमान पर टंका प्रश्न लगा| झटके में प्रकृति का सारा सौन्दर्य बोध ख़त्म हो गया| वापस सवाल उसका पीछा करने लगे और वह उनसे भागती हुई घर आ गयी| बहुत देर तक सोचने के बाद वह इस नतीजे पर पहुँची कि दरअसल सवाल ही जवाब था और कुछ कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं, उसकी अपनी कहानी की तरह |

उस रोज उसकी लिखी कहानी के साथ ही उस कहानी का भी अंत हो गया जो वह अपनी जिंदगी के पन्ने पर लिखने चली थी |

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