Saturday, November 24, 2018

लड़ाई

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हम नहीं लड़ते विलुप्त होते पक्षियों के लिए
जबकि लड़ते हैं हमारे अपने-अपने धर्मों के
अदृश्य देवी - देवताओं के लिए

अहंकार की जद में अब हम नहीं देखते झुक कर नदी को
भर लेते हैं नदी को ही प्लास्टिक की बोतलों में
फिर नदी को झोले में भर कर ढ़ोते हैं बुझाने अपनी प्यास

लड़ते हैं जमीन के किसी टुकड़े के लिए या किसी खदान के लिए
लड़ते हैं अक्सर हम अपराध करते रहने के लिए
कभी-कभी तो बस मन होता है, इसलिए भी लड़ लेते हैं

हम हो गए हैं इतने शातिर कि हम पेड़ नहीं चुराते
चुरा लेते हैं अब एक पूरा का पूरा जंगल ही
या फिर एक पूरा देश चुरा लेते हैं

तकनीक को बना लिया है हमने अब ऐसा अस्त्र
कि आधारपूर्वक चुराने लगे हैं परिचय लोगों का
चुराने लगे हैं मनुष्यता के साथ देवताओं का देवत्व भी 

एक लड़ाई हो अब इंसानियत बचा लेने की खातिर
बजाकर बिगुल या कर धनुष की टंकार
और चोरी हो जाए धरती से धूर्तता और अहंकार 

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