Saturday, November 24, 2018

दुर्घटना

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1.
अपने उस सुनियोजित मृत्यु आयोजन के लिए 
उसने लिखा सुसाइड नोट किसी निमंत्रण पत्र की तरह 
अलग-अलग संबोधन वाले अलग-अलग लिफ़ाफ़े में 
एक को रखा मेज पर कमरे के दबाकर श्रीमद्‍भगवद्‍गीता से 
दूसरे को जिला-दंडनायक कार्यालय भेजा परिवार की सुरक्षा के लिए 
तीसरा छोड़ आया उसके घर जिसे लोग बता रहे हैं मृत्यु का कारण 

हर पत्र में बस इतना ही लिखा कि वह परेशान था बेहद 
नहीं लिखा किसी भी पत्र में उसने सटीक कारण आत्महत्या का 
वह जानता था नहीं करेगा कोई भी सम्मान उसकी भावनाओं का 
कि अलग थे समाज से उसके तय किए हुए रास्ते और मरहले 
और नहीं समझ पाते हैं लोग यह शरीर के नष्ट हो जाने से पहले 

देश में अब नहीं होती हत्याएँ, न जाने क्यूँ बढ़ती ही जा रही हैं दुर्घटनाएँ 
कृष्ण को पूजने वाले देश में इन दिनों गीता से दबाए जा रहे हैं सुसाइड नोट्स !

2.
अपने तमाम दुखों को स्थगित करने के लिए 
कूद गया सिउरी पुल से बूढ़ी गंडक के जल में 
प्रेम में समाज से परास्त अठारह बरस का वह लड़का 
फिर हो उठा आतुर नदी का मटमैला जल 
उसके शरीर में प्रवेश करने के लिए 
मरता रहा पीकर बूढ़ी गंडक का पानी वह गटागट 
बढ़ता घनत्व शरीर का डुबाता रहा उसे मोक्ष के जल में 
जब बंद हुई प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की 
और शुरू हुआ अपघटन, 
क्या देख पायी थी उसकी आत्मा
कि जिस समाज के एक चन्द्र खंड के समक्ष 
वह था नत ज्योत्स्ना के उत्सव में करते हुए प्रतीक्षा
मन ही मन मिलन तिथि के पूर्णिमा की 
उस समाज की विवेचनाओं में सघन थी अमावस्या की कालिख 

सावधान ! प्रेम इस समाज में वह लक्ष्मण रेखा है 
जिसे पार करते ही घट सकती है कोई भी दुर्घटना !

3.
तुम प्रेम में भी मर सकते थे लड़के 
तुमने जल को क्यूँ किया कलंकित !
तुम उठा सकते थे जल से शब्द नदी के वक्ष से 
और रख सकते थे अपनी प्रियतमा की आँखों में 
फिर ले सकते थे ताप उन आँखों के दीए से 
आजीवन अपनी शीतल आँखों में !

देखो तो लड़के ! आज नदी है, जल है, प्रियतमा है 
बस एक तुम ही नहीं हो कहीं भी 
दर्ज होकर रह गए हो तुम प्रियतमा की स्मृति में 
एक अप्रत्याशित दुर्घटना की तरह !

4.
समाज से निराश और कितनी युवा लाशों को ढ़ोने के बाद 
आप लिख सकेंगे अपनी गौरवगाथा हे वीरों !
देखिये कहीं लज्जित न कर दें आप आदिमानवों को 
तोड़कर उनके समस्त पाषाण युगीन कीर्तिमान !

फ़िलहाल आपके काँधे पर जिस युवा का शव है 
आप उसे लेकर आगे बढ़िये राम नाम के साथ 
आगे बढ़ते हुए जब थोड़ा झुकने लगे आपकी पीठ 
तो शायद गलने लगे आपके अहंकार का पहाड़  
और यदि ऐसा हुआ सचमुच ही 
तो देख सकेंगे आप आसपास प्रकृति और इंसान  
माथे के ऊपर तना मिलेगा इन्द्रधनुषी आसमान 

बंद कीजिए ऐसी युवा लाशों को ढ़ोने का कारोबार 
नहीं तो बहुत समय नहीं लगेगा उस दुर्घटना को घटते 
जिसके घटित हो जाने से हम पहुँच जाएँगे पुनः पाषाण युग में !

5.
दृश्यमान आँखों से ज्योत के बुझते ही वह आती है
जब वह आती है तो कभी हिलाती है साँकल घर का
चूड़ी और कलाई-विहीन हाथों से या फिर कभी
बिना बताए ही करती है अनाहूत प्रवेश अचानक

वह आती है स्त्री विहीन उस साड़ी की तरह
जिसके आँचल में बंधा होता है गाढ़ा अंधकार
वह आती है पाँव विहीन भारी जूते की तरह
और बेतरह रौंद कर रख देती है जीवन का सर

फिर करती है चित्कार मुख विहीन, जिह्वा विहीन, स्वर विहीन कंठ से
जिससे हो उठता है गुंजायमान दिक-दिगन्त करुण रुदन स्वर से
समय से जीवन की दूरी घटते ही वह आने लगती है बिलकुल पास
और कर देती है अस्थिर जीवन को स्थिर सुनाकर मृत्यु का काव्य

जीवन के पाठ्यक्रम में समय एक शून्य विषय है जहाँ
भोरे भिनसारे भी हो सकता है अस्त जीवन का सूरज
और हमारे अतीत में जो प्रगाढ़ शुन्यता बची रह गयी थी
एकदिन वही शुन्यता कर लेती है दखल हमारा स्थान

मृत्यु एक अवश्यम्भावी दुर्घटना है !

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