१. कहते हैं सब लालन फकीर हिंदू हैं या यवन
कहते हैं सब लालन फकीर हिंदू है या यवन,
क्या कहूं अपना मैं नहीं जानता संधान ।।
एक ही घाट पर आना जाना, एक माँझी खे रहा,
कोई नहीं खाता किसी का छुआ, अलग जल का कौन करता है पान।।
वेद पुराणों में सुनते हैं, हिन्दू के हरि हैं यवन के साईं,
फिर भी मैं समझ नहीं पाता, दो रूपों में सृष्टि के क्या हैं प्रमाण।।
नहीं है मुसलमानी, नहीं है जिसके पास जनेऊ वह भी तो है ब्राह्मणी,
समझो रे भाई दिव्य ज्ञानी, है लालन भी वैसा ही जात एक जन।।
*मुसलमानी = खतना
२. सत्य काम में कोई नहीं राज़ी
सत्य काम में कोई नहीं राज़ी
देखता हूँ सब कुछ ही ता ना ना ना ।
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
जब तुम आये थे तो जाति क्या थी तुम्हारी?
आकर तुमने कौन सी जाति अपनाई?
जब तुम आये थे तो जाति क्या थी तुम्हारी?
आकर तुमने कौन सी जाति अपनाई?
जाते समय किस जाति के रहोगे?
जाते समय किस जाति के रहोगे?
वह बात सोचकर कहो ना ।
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
ब्राह्मण चंडाल चमार मोची
एक ही जल से सब होते हैं शुचि
ब्राह्मण चंडाल चमार मोची
एक ही जल से सब होते हैं शुचि
देख-सुनकर नहीं होती रूचि
देख-सुनकर नहीं होती रूचि
यम तो किसी को भी नहीं छोड़ेगा।
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
चुपके से जो खाता है वेश्या का भात
उससे धर्म की क्या क्षति होती है
चुपके से जो खाता है वेश्या का भात
उससे धर्म की क्या क्षति होती है
लालन कहे जात किसे कहते हैं
लालन कहे जात किसे कहते हैं
वह भ्रम तो नहीं गया ...
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
सत्य काम में कोई नहीं राज़ी
सत्य काम में कोई नहीं राज़ी
देखता हूँ सब कुछ ही ता ना ना ना ।
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
यह क्या अजब पागलपना
जात गया जात गया कहकर
पैदा होने का भाव
३. मैंने एकदिन भी नहीं देखा उसे
घर के पास है आरसी नगर
वहाँ एक पड़ोसी रहता है
मैंने एकदिन भी नहीं देखा उसे
गाँव भर अगाध पानी
न है किनारा, न है तरणी किनारे
इच्छा होती है कि देखूँ उसे
कैसे वहाँ जाऊं रे ?
क्या कहूँ पड़ोसी के बारे में
हस्त पद स्कंध माथा नहीं है
क्षण भर तैरता है शून्य के ऊपर
क्षण भर बहता है नीर में
पड़ोसी यदि मुझे छूता
यम यातना सब दूर हो जाते
वह और लालन एक साथ रहते हैं
लाख योजन फाँक रे //
*तरणी = नौका, फाँक = दूरी
४. मैं अपार होकर बैठा हूँ
मैं अपार होकर बैठा हूँ
हे दयामय,
उस पार ले जाओ मुझे ।।
मैं अकेला रह गया घाट पर
भानु बैठ गया नदी के पाट पर
(मैं) तुम्हारे बिन हूँ घोर संकट में
नहीं दिख रहा है उपाय ।
नहीं है मेरे पास भजन-साधन
चिरदिन कुपथ की ओर गमन
नाम सुना है पतित-पावन
इसलिए देता हूँ दुहाई ।
अगति को यदि नहीं दी गति
इस नाम की रह जायेगी अख्याति
लालन कहे, अकुलपति
कौन कहेगा तुम्हें ।।
*अगति=दुर्गति/दुर्दशा, भानु = सूर्य
५. मिलन होगा कितने दिनों बाद
मिलन होगा कितने दिनों बाद
अपने मन के मानुष के साथ ।।
चातक प्रायः अहर्निशी
देखता है काला शशि
होने को चरण-दासी,
ऐसा होता नहीं है भाग्य गुण से ।।
जैसे मेघ का विद्युत मेघ में ही
छुप जाने से नहीं हो पाता अन्वेषण,
काले (ईश्वर/कृष्ण) को खोकर वैसे ही
इस रूप को ढूँढता हूँ दर्पण में ।।
जब उस रूप का स्मरण होता है,
नहीं रहता है लोक-लज्जा का भय
लालन फकीर सोचकर कहता है हमेशा ही
(यह) प्रेम जो करता है वह जानता है ।।
६. तुम्हारे घर में रहते हैं
तुम्हारे घर में वास करते हैं कौन तुम्हें नहीं पता ओ मन
तुम्हारे घर में रहते हैं कितने जन, तुम्हें नहीं पता मन
तुम्हारे घर में रहते हैं कितने जन |
एक जन आँकता है छवि होकर एकाग्र, ओ मन
दूसरा जन बैठकर लगा रहा होता है रंग,
फिर उस छवि को करता है नष्ट
कौन जन, कौन जन
तुम्हारे घर में रहते हैं कितने जन |
एक जन छेड़ता है राग इकतारे पर, ओ मन
दूसरा जन झाल पर देता है ताल,
फिर बेसुरे राग में गाता है देखो
कौन जन, कौन जन
तुम्हारे घर में रहते हैं कितने जन |
रस पीकर होकर माताल, यह देखो
हाथों से फिसल जाती है घोड़े की लगाम,
उस लगाम को पकड़ता है देखो
कौन जन, कौन जन
तुम्हारे घर में रहते हैं कितने जन |
७. विदेशी के संग कोई प्रेम ना करना
पहले भाव जानकर प्रेम करना
अन्यथा अंत में मिलेगी यंत्रणा
विदेशी के संग कोई प्रेम ना करना ||
विदेशी के भाव में भाव मिलाने से
भाव में भाव कभी नहीं मिलेगा
पथ के मध्य में लक्ष्य निर्धारित करने से
किसी के साथ कोई नहीं जाएगा ||
देश का देशी यदि हुआ वह
उसे पाया जा सकता है समय-असमय,
विदेशी होता है वह जंगली तोता
जो कभी पोस नहीं मानता ||
नलिनी और सूर्य का प्रेम है जैसा
उसी तरह प्रेम करना रसिक सुजान,
लालन कहे पहले धोखा खाकर
बाद में रोने से कुछ नहीं मिलेगा ||
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ফকির লালন শাহ
1. সবে বলে লালন ফকির হিন্দু কি যবন
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সবে বলে লালন ফকির হিন্দু কি যবন,
কি বলিব আমার আমি না জানি সন্ধান।।
একই ঘাটে আসা যাওয়া,এক পাটনী দিচ্ছে খেওয়া,
কেউ খায়না কারো ছোঁয়া,বিভিন্ন জল কেবা পান।।
বেদ পুরানে শুনিতে পাই,হিন্দুর হরি যবনের সাঁই,
তাওত আমি বুঝতে নারি,দুই রূপ সৃষ্টি কি প্রমাণ।।বিবিদের
নাই মুসলমানী,পৈতা যার নাই সেওত বাওনী,
বোঝরে ভাই দিব্য জ্ঞানী,লালন তমনি জাতএক জনা।।
২. সত্য কাজে কেউ নয় রাজি
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সত্য কাজে কেউ নয় রাজি
সবই দেখি তা না না না….
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
আসবার কালে কি জাত ছিলে
এসে তুমি কি জাত নিলে
আসবার কালে কি জাত ছিলে
এসে তুমি কি জাত নিলে
কি জাত হবে যাবার কালে
কি জাত হবে যাবার কালে
সে কথা ভেবে বলো না…
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
ব্রাহ্মণ চন্ডাল চামার মুচি
এক জলে সব হয় গো সুচি
ব্রাহ্মণ চন্ডাল চামার মুচি
এক জলে সব হয় গো সুচি
দেখে শুনে হয় না রুচি
দেখে শুনে হয় না রুচি
যমে তো কাউকে ছাড়বে না…
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
গোপনে যে বেশ্যার ভাত খায়
তাতে ধর্মের কি ক্ষতি হয়
গোপনে যে বেশ্যার ভাত খায়
তাতে ধর্মের কি ক্ষতি হয়
লালন বলে জাত কারে কয়
লালন বলে জাত কারে কয়
সে ভ্রম তো গেল না…
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
সত্য কাজে কেউ নয় রাজি
সত্য কাজে কেউ নয় রাজি
সবই দেখি তা না না না….
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
একি আজব কারখানা
জাত গেল জাত গেল বলে
৩. আমি একদিনও না দেখিলাম তারে
বাড়ির পাশে আড়শি নগর
সেথায় এক পড়শি বসত করে
আমি একদিন ও না দেখিলাম তারে
গেরাম বেড়ে অগাধ পানি
নাই কিনারা নাই তরণী পারে
বান্ছা করি দেখব তারে
কেমনে সেথায় যাইরে
কি বলব পড়শির ও কথা
হস্থ পদ স্কন্ধ মাথা নাইরে
ক্ষনিক ভাসে শূন্যের উপর
ক্ষনিক ভাসে নীরে
পড়শি যদি আমায় ছুতো
যম যাতনা সকল যেত দূরে
সে আর লালন একখানে রয়
লক্ষ যোজন ফাক রে//
4. আমি অপার হয়ে বসে আছি
আমি অপার হয়ে বসে আছি
ও হে দয়াময়,
পারে লয়ে যাও আমায়।।
আমি একা রইলাম ঘাটে
ভানু সে বসিল পাটে-
(আমি) তোমা বিনে ঘোর সংকটে
না দেখি উপায়।।
নাই আমার ভজন-সাধন
চিরদিন কুপথে গমন-
নাম শুনেছি পতিত-পাবন
তাইতে দিই দোহাই।।
অগতির না দিলে গতি
ঐ নামে রবে অখ্যাতি-
লালন কয়, অকুলের পতি
কে বলবে তোমায়।।
5. মিলন হবে কত দিনে
মিলন হবে কত দিনে
আমার মনের মানুষের সনে।।
চাতক প্রায় অহর্নিশি
চেয়ে আছি কালো শশী
হব বলে চরণ-দাসী,
ও তা হয় না কপাল-গুণে।।
মেঘের বিদ্যুৎ মেঘেই যেমন
লুকালে না পাই অন্বেষণ,
কালারে হারায়ে তেমন
ঐ রূপ হেরি এ দর্পণে।।
যখন ও-রূপ স্মরণ হয়,
থাকে না লোক-লজ্জার ভয়-
লালন ফকির ভেবে বলে সদাই
(ঐ) প্রেম যে করে সে জানে।।
6. তোমার ঘরে বসত করে
তোমার ঘরে বাস করে কারা ও মন জান না,
তোমার ঘরে বসত করে কয় জনা, মন জান না
তোমার ঘরে বসত করে কয় জনা।
এক জনায় ছবি আঁকে এক মনে, ও রে মন
আরেক জনায় বসে বসে রঙ মাখে,
ও আবার সেই ছবিখান নষ্ট করে
কোন জনা,কোন জনা
তোমার ঘরে বসত করে কয় জনা।
এক জনে সুর তোলে এক তারে, ও মন
আরেক জন মন্দিরাতে তাল তোলে,
ও আবার বেসুরা সুর ধরে দেখো
কোন জনা, কোন জনা
তোমর ঘরে বসত করে কয় জনা।
রস খাইয়া হইয়া মাতাল, ঐ দেখো
হাত ফসকে যায় ঘোড়ার লাগাম,
সেই লাগাম খানা ধরে দেখো
কোন জনা, কোন জনা
তোমার ঘরে বসত করে কয় জনা।
7. বিদেশীর সঙ্গে কেউ প্রেম করো না।
বিদেশীর সঙ্গে কেউ প্রেম করো না।
আগে ভাব জেনে প্রেম করো
যাতে ঘুচবে মনের বেদনা।।
ভাব দিলে বিদেশীর ভাবে
ভাবে ভাব কভু না মিশিবে।
পথের মাঝে গোল বাঁধিলে
কারো সাথে কেউ যাবে না।।
দেশের দেশী যদি সে হয়
মনে করে তারে পাওয়া যায়।
বিদেশী ঐ জংলা টিয়ে
কখনো পোষ মানে না।।
নলিনী আর সূর্যের প্রেম যেমন
সেই প্রেমের ভাব লও রসিক সুজন।
অধীন লালন বলে, ঠকলে আগে
কাঁদলে শেষে সারবে না।।
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