Wednesday, March 5, 2014

दोहे- फागुन के

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संग फागुनी रंग लें, होली का त्यौहार|
बहती बासंती चपल, सुरभित मंद बयार||

 
नव कोंपल धारण करे, ज्यों तरु जीर्ण उतार|
तज कुभाव तू भी मनुज, भर मन उच्च विचार||


देता फागुन मास है, सबको यह संदेश|
पर हित सोचें भूलकर, सकल राग अरु द्वेष||


आमों वाली डालियां, बौराती सुन फाग|
गेहूं सरसों झूमतें, मद लहरित बन बाग||


वासंती धरणी हुई, फसल पकी खलिहान|
महकी अमिया भ्रमर दल, गाते गुनगुन गान||


टेसू तरुवर पे लदें, लग लग कर बहु अंग|
निखर संवर देखों चढ़ा, चटख फागुनी रंग||


अनुरागी अंतस लिए, भर पिचकारी रंग|
खेलत बनवारी हुलस, होली राधा संग||


मंदिर लो बरसा बहुल, ठाकुर जी पर रंग|
स्वयं लाल मीरा हुई, जगत् देखकर दंग||


है सुलोचना फाग यह, मधुर प्रेम का राग|
प्रीत राधिका की कभी, मीरा का वैराग||


(c)सुलोचना वर्मा

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