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(१)
आ गया है फागुन
और साथ ले आया है मंज़र
तुम्हारे साथ मेरी आखिरी होली का
यह लाल नहीं, हरा रंग है
इतनी आसानी से नहीं उतरेगा
यह कहकर जो तुमने मला था चेहरे पर
अपनी उँगलियों के पोरों से
और मैं विह्वल हो उठी थी अंतस तक
(२)
हर बार ले आती हूँ वही हरा रंग
महसूस करती हूँ उन्हें छूकर
उँगलियों के पोरों से
वो बतियाने लगते हैं
मचल जाते हैं बच्चों सा
और जब भरते हैं किल्लोल
मन श्याम श्याम होता है
मैं मीरा बन जाती हूँ
(३)
वो श्याम की होली थी
मीरा करती भी तो क्या
प्रेम में राधा बन गयी
ओढ़कर बसंती चुनरिया
प्रीत के रंग में रंग गयी
और मैं .....
तुम्हारे प्रेम में अब तक लाल हूँ
और वह हरा रंग उसे ज़िंदा रखता है
(c)सुलोचना वर्मा
(१)
आ गया है फागुन
और साथ ले आया है मंज़र
तुम्हारे साथ मेरी आखिरी होली का
यह लाल नहीं, हरा रंग है
इतनी आसानी से नहीं उतरेगा
यह कहकर जो तुमने मला था चेहरे पर
अपनी उँगलियों के पोरों से
और मैं विह्वल हो उठी थी अंतस तक
(२)
हर बार ले आती हूँ वही हरा रंग
महसूस करती हूँ उन्हें छूकर
उँगलियों के पोरों से
वो बतियाने लगते हैं
मचल जाते हैं बच्चों सा
और जब भरते हैं किल्लोल
मन श्याम श्याम होता है
मैं मीरा बन जाती हूँ
(३)
वो श्याम की होली थी
मीरा करती भी तो क्या
प्रेम में राधा बन गयी
ओढ़कर बसंती चुनरिया
प्रीत के रंग में रंग गयी
और मैं .....
तुम्हारे प्रेम में अब तक लाल हूँ
और वह हरा रंग उसे ज़िंदा रखता है
(c)सुलोचना वर्मा
Bahut sunder aur bahut komal rachna! Holi ki haardik shubhkamnayein..!
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