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सोचती हूँ लिख डालूँ एक कविता
वर्णन हो जिसमें माँ की ममता का
पढ़ें जिसे अनाथालय के बच्चे
और जान सके क्या होती है माँ
सोचा है कहूँगी उनसे
जेठ की तपती दुपहरी में
इकलौते छाते से ढंकती है जिसका सर
यमुना पुस्ता में रहनेवाले उस छोटे बच्चे से पूछे
पूछे मयूर विहार की उस नन्ही लड़की से
जिसकी गुड़िया के कपड़े सिले हैं माँ ने
अपनी रेशमी साड़ी के ज़रीदार आँचल से
बड़े ही चाव से, कई रातें जागकर
और जिसकी एक मुस्कान के लिए
माँ ने बिसार दिए अपने सारे दुःख
उसके माथे पर माँ का हाथ
आया है बनकर जवाब ईश्वर की प्रार्थना का
फिर सोचती हूँ ....
कहाँ लिख पाएगी कोई कविता
कि क्या होती हैं माँ
और अनाथालय के बच्चों ने कभी थककर
माँ की गोद में सर भी तो नहीं रखा होगा
नहीं पुकारा होगा कभी अँधेरे में डरकर माँ को
कहाँ देखा होगा कभी अपनी तकलीफों में
ढाढ़स बँधाता माँ का विह्वल चेहरा
ऐसे में मेरी कविता ढूँढती रह जायेगी अपने अर्थ
जिसके सारे शब्द समवेत स्वर में भी
नहीं बता पायेंगे कि क्या होती है माँ
सोचती हूँ लिख डालूँ एक कविता
वर्णन हो जिसमें माँ की ममता का
पढ़ें जिसे अनाथालय के बच्चे
और जान सके क्या होती है माँ
सोचा है कहूँगी उनसे
जेठ की तपती दुपहरी में
इकलौते छाते से ढंकती है जिसका सर
यमुना पुस्ता में रहनेवाले उस छोटे बच्चे से पूछे
पूछे मयूर विहार की उस नन्ही लड़की से
जिसकी गुड़िया के कपड़े सिले हैं माँ ने
अपनी रेशमी साड़ी के ज़रीदार आँचल से
बड़े ही चाव से, कई रातें जागकर
और जिसकी एक मुस्कान के लिए
माँ ने बिसार दिए अपने सारे दुःख
उसके माथे पर माँ का हाथ
आया है बनकर जवाब ईश्वर की प्रार्थना का
फिर सोचती हूँ ....
कहाँ लिख पाएगी कोई कविता
कि क्या होती हैं माँ
और अनाथालय के बच्चों ने कभी थककर
माँ की गोद में सर भी तो नहीं रखा होगा
नहीं पुकारा होगा कभी अँधेरे में डरकर माँ को
कहाँ देखा होगा कभी अपनी तकलीफों में
ढाढ़स बँधाता माँ का विह्वल चेहरा
ऐसे में मेरी कविता ढूँढती रह जायेगी अपने अर्थ
जिसके सारे शब्द समवेत स्वर में भी
नहीं बता पायेंगे कि क्या होती है माँ
its grttt....khub bhalo
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