Friday, April 25, 2014

वृंदा की अद्भुत छवि

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एक दिन मेरी कविता उकेर रही थी
वृंदा की अद्भुत छवि
जिसमें रंग उभर रहे थे तरह तरह के
उसके अभिशाप और उसकी पवित्रता से जुड़े
प्रत्येक रंग का था अपना-अपना प्रश्न
जिनका उत्तर देने हेतु प्रकट होते हैं श्री कृष्ण
और उनके तन पर होती है -गुलाबी रंग की धोती
विदित है उन्हें - नहीं भाता है मुझको पीला रंग
यहाँ उनका वर्ण भी श्याम नहीं होता है
होता है गेहुआं- मेरी पसंद की मानिंद 


फिर होता है कुछ ऐसा  कि
भनक पड़ जाती है राधा को उनके आने की
सरपट दौड़ आती है लिए अपने खुले काले केश
जिसे गूंथने लगते हैं बड़े ही जतन से राधारमण
राधा छेड़ देती है तान राग कम्बोज की
धरकर माधव की बांसुरी अपने अधरों पर


झूमने लगता है मेरे मन का श्वेत मयूर
मैं लीन हो जाती हूँ वंशी की उस धुन पर
कि तभी शोर मचाता है धर्म का एक ठेकेदार
लगाया जाता है आरोप मुझपर -तथ्यों से छेड़खानी का
पूछे जाते हैं कई प्रश्न धर्म के कटघरे में
माँगे जाते हैं कई प्रमाण मुझसे
गुलाबी धोती से लेकर, राधा के वंशीवादन तक
कृष्ण के वर्ण से लेकर, मन के श्वेत मयूर तक


मैं लेकर दीर्घ-निश्वास, रह जाती हूँ मौन 
और मेरे मौन पर मुखड़ हो उठती है मेरी कविता 
पूछती है धर्म के उस ठेकेदार से
कि जब पढ़ा था उसने सारा धर्मग्रन्थ
तो क्यूँ बस पढ़ा था उसने केवल शब्दों को
क्यूँ नहीं समझ पाया वह उनका अभिप्राय
प्रेम में कृष्ण भी कहाँ रह पाए थे केवल कृष्ण
उनके वस्त्र का गुलाबी होना प्रेम की सार्थकता थी
राधा ने माधव की वंशी से गाया- वही राग कम्बोज
कृष्ण प्रतीक हैं प्रेम का, और प्रेम का कोई वर्ण नहीं होता
जो कभी अपने अधूरे ज्ञान से झांककर देखोगे बाहर
जान पाओगे कि मयूर श्वेत भी होता है !!!

लौट जाता है कुंठा लिए धर्म का ठेकेदार
और  ढूँढने लगता है व्यस्त होकर
राग कम्बोज का उल्लेख -उन्ही धर्मग्रंथों में
अंतर्ध्यान हो जाते हैं राधा संग कृष्ण
रो देती है वृंदा इस पूरे घटनाक्रम पर
बह जाते हैं रंग उसकी अश्रुधार से 
अनुत्तरित रह जाते हैं मेरी कविता में
रंगों के तमाम प्रश्न
रंग- जिन्हें भरना था वृंदा की अद्भुत छवि को |


(C) सुलोचना वर्मा

 

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