Thursday, April 24, 2014

पूरा प्रेम

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पांचाली से करता था प्रेम 
अंग प्रदेश का कर्ण
और पांडवों में बाँट दी गयी द्रौपदी
पत्नी, जो पांच भाईयों की थी
चाहती थी अर्जुन को सर्वाधिक
बन गयी नरक की भागी


उस युग में भी नारी करती थी प्रेम
सचमुच का प्रेम, असीम प्रेम 


एक प्रेम अहिल्या ने किया
कर दी गयी परिवर्तित शिला में
एक प्रेम शकुन्तला ने भी था किया
और रह गयी चिर प्रतीक्षारत वन में
पार्वती ने तो प्रेम में तपस्या ही कर डाला
किया इतना प्रेम और बन गयी मत्स्या
समर्पण उसका सम्पूर्ण था
फिर भी, प्रेम रहा अतृप्त |


जीवन में थोड़ा प्रेम, थोड़ी अतृप्ति
और अतृप्ति के अनेकों अभिशाप
मृत आत्मसम्मान
सुप्त अभिलाषाएं
मानसिक प्रताड़ना
दैहिक कष्ट
लुप्त निंद्रा
और भी कई .........


उसे चाहिए था सम्पूर्ण समर्पण का पूरा प्रेम
वह शिला नहीं, ना ही मीन, नहीं वस्तु
वह थी नारी, नर समान जीवंत नारी
धरती का लगभग आधा हिस्सा
और पूरा प्रेम पाने की अधिकारिणी नारी |


वह संत शिरोमणि नहीं, था केवल एक पुरुष
लिखा जिसने नारी को तारण की अधिकारी
उस महाकाव्य को मैं एक मिथक लिखूंगी
कि नहीं हो सकती वह रचना महान जिसमे
नर और नारी के ना हों समान अधिकार 
जहाँ बस प्रेम की व्याख्या तो लिखी हो
और उपस्थित ना हो लेशमात्र विश्वास 
जहाँ नर को प्रभु कह करे संबोधित
करे गुणगान उसके महिमा की
उसी पृष्ठ पर करे चित्रित नारी को
जिसमे झुका हो उसका माथा
नहीं चिंता किसीको उसकी  गरिमा की |                              

(c)सुलोचना वर्मा

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