Tuesday, November 18, 2014

अच्छे के लिए

---------------------------
इक वो रहा जैसे है मौजूद हवा फिजाओं में
इक रही वो जैसे कि बहती है नदी कलकल सी
और पसंद रहा दोनों को करना बातें सब्र तलक  


जो बहती रही बनकर नदी
मोड़ लेना चाहती थी रुख अपना
कि बनी रहे हमसफ़र हवा की
और मुश्किल था जीना बिन हवा के


जो इक रहा हवा सा
न था मयस्सर उसे डूबना पानी में
कि अभी बची थी नदियाँ और भी कई


नदी ने समंदर में कूदकर जान दे दी
उधर गूंज रहा है हवा का गीत फिजाओं में
जो भी होता है ; होता है अच्छे के लिए


-------सुलोचना वर्मा

No comments:

Post a Comment