Tuesday, November 25, 2014

सुबह

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उजियाली उतर आई भोर की सीढ़ियाँ
थामकर सूरज का हाथ ,
गा रही है कोयल उनके स्वागत में गीत ,
नहीं करने देता महसूस झर झर बहता झरना
कमी किसी प्रकार के वाद्ययंत्र की ,
बिन घुँघरू बांधे मोर कर रहा है रियाज
अपने चिरपरिचित सूफियाने अंदाज में
और पर्वत ??
कर रहा है अवलोकन
केवल एक अच्छा श्रोता बन 
किसी के रूप का ; तो किसी के हूनर का
निखर रही हैं डाल पर कोपलें
पाकर सुरभित बयार का स्नेहिल स्पर्श,
और पखार रहा है मेघ धरणी का चरण


बेहद खूबसूरत होता है जागना कभी कभार
तन्द्रा का टूटना जिसे कहते हैं


-----सुलोचना वर्मा --------

 

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