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नहीं लिखेगी किसी सांकेतिक भाषा में चिठ्ठी
मेरी कविता की खूबसूरत नायिका
कि उसे पसंद है स्पष्टवादी बने रहना
नहीं लिखेगी चिठ्ठी में कि सबकुछ है ठीक
जहाँ जीवन ने पकड़ लिया हो खटिया अवसाद का
और जीवन में बचा हो जीवन बहुत थोड़ा
नहीं लिखेगी कि मना पाएगी ज़श्न जिंदगी का अकेले
कि वह खूबसूरत है क्लियोपैट्रा सी
और दुनिया है पागल उसके प्रेम में
नहीं लिखेगी कि उसे मालूम है वो सारी बातें
जो उसने कभी कहा ही नहीं
और फिर भी करती है प्रेम
नहीं लिखेगी कि नहीं रहती वो अब अपने आप में
कि छोड़ आयी थी खुद को
पिछली मुलाक़ात के अंतिम स्टेशन पर
नहीं लिखेगी कि जी लेती है तीन रत्ती भर
बीते पलों को हर रोज़ कई बार
कि वह पल था हीरे सा जीवन के शुक्र पर्वत पर
अब वह नहीं लिखेगी!!!
-----सुलोचना वर्मा--------
नहीं लिखेगी किसी सांकेतिक भाषा में चिठ्ठी
मेरी कविता की खूबसूरत नायिका
कि उसे पसंद है स्पष्टवादी बने रहना
नहीं लिखेगी चिठ्ठी में कि सबकुछ है ठीक
जहाँ जीवन ने पकड़ लिया हो खटिया अवसाद का
और जीवन में बचा हो जीवन बहुत थोड़ा
नहीं लिखेगी कि मना पाएगी ज़श्न जिंदगी का अकेले
कि वह खूबसूरत है क्लियोपैट्रा सी
और दुनिया है पागल उसके प्रेम में
नहीं लिखेगी कि उसे मालूम है वो सारी बातें
जो उसने कभी कहा ही नहीं
और फिर भी करती है प्रेम
नहीं लिखेगी कि नहीं रहती वो अब अपने आप में
कि छोड़ आयी थी खुद को
पिछली मुलाक़ात के अंतिम स्टेशन पर
नहीं लिखेगी कि जी लेती है तीन रत्ती भर
बीते पलों को हर रोज़ कई बार
कि वह पल था हीरे सा जीवन के शुक्र पर्वत पर
अब वह नहीं लिखेगी!!!
-----सुलोचना वर्मा--------
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