---------------------------------------------
मैंने देखा है उन्हें भूख से कुलबुलाते हुए
जब पार होती है उनके सहने की सीमा
वो चबाने लगते हैं संविधान के ही पन्ने
या शहीदों पर चढ़ी माला के फूलों को
जिससे थोड़ा और पंगु हो उठता है देश
और थोड़ा भारी हमारे मुल्क की पताका
जो फहर तो जाती है ऊँचे आसमान में
विश्व के मानचित्र पर गर्व से नहीं लहराती
अब यह कोई आम भूख तो है नहीं
जो लगे अलसुबह के नाश्ते से लेकर
रात के खाने तक के सफर के ही बीच
यह एक ऐसी भूख है जो कभी नहीं मिटती
इसीलिए जब कभी नहीं भरता उनका पेट
मिठाई, रोटियों, फलों या सब्जियों से
जानने को अपनी इस भूख का आयाम
वो किसानों की जमीन ही खा जाते हैं
-----सुलोचना वर्मा----------
मैंने देखा है उन्हें भूख से कुलबुलाते हुए
जब पार होती है उनके सहने की सीमा
वो चबाने लगते हैं संविधान के ही पन्ने
या शहीदों पर चढ़ी माला के फूलों को
जिससे थोड़ा और पंगु हो उठता है देश
और थोड़ा भारी हमारे मुल्क की पताका
जो फहर तो जाती है ऊँचे आसमान में
विश्व के मानचित्र पर गर्व से नहीं लहराती
अब यह कोई आम भूख तो है नहीं
जो लगे अलसुबह के नाश्ते से लेकर
रात के खाने तक के सफर के ही बीच
यह एक ऐसी भूख है जो कभी नहीं मिटती
इसीलिए जब कभी नहीं भरता उनका पेट
मिठाई, रोटियों, फलों या सब्जियों से
जानने को अपनी इस भूख का आयाम
वो किसानों की जमीन ही खा जाते हैं
-----सुलोचना वर्मा----------
No comments:
Post a Comment