भर आया फागुन का आकाश
तो भर आया उसका भी गला
और भर आई उसकी आँखें भी
ज्यूँ बरसने लगी बूँदे बारिश की
और धीरे-धीरे मिट्टी बैठ जाने लगी
बैठने लगा उसका कलेजा भी
सो गयी खेत में खड़ी फसल
जगी रही बर्षा रानी कुछ यूँ
जागता रहा सोते हुए वह भी
रुकी बारिश कर फसल बर्बाद
बर्बाद हुआ वह फसल से ज्यादा
वह इंसान तो है ही, किसान भी
-----सुलोचना वर्मा ---------
तो भर आया उसका भी गला
और भर आई उसकी आँखें भी
ज्यूँ बरसने लगी बूँदे बारिश की
और धीरे-धीरे मिट्टी बैठ जाने लगी
बैठने लगा उसका कलेजा भी
सो गयी खेत में खड़ी फसल
जगी रही बर्षा रानी कुछ यूँ
जागता रहा सोते हुए वह भी
रुकी बारिश कर फसल बर्बाद
बर्बाद हुआ वह फसल से ज्यादा
वह इंसान तो है ही, किसान भी
-----सुलोचना वर्मा ---------
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