Sunday, January 15, 2017

प्रिय

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प्रिय, क्या तुम गा सकते हो कोई गीत मेरे लिए आज?
अभिधान से झड़े शब्दों को लेकर लिखा गया सम्मोहन गीत नहीं
तुम्हारी वाम अस्थियों की मज्जा में उपजता हुआ एक स्नेहिल गीत 
किसी शीतार्त संध्या माथे पर बोसा जड़ते होठों की उष्णता का गीत 
अच्छा यह तो बताओ, क्या तुम्हें गाना आता है प्रिय?

किसी रोज़ लक्षद्वीप घुमाने ले चलोगे प्रिय?
सुना है कि यह बना ज्वालामुखीय विस्फोट से निकले लावा से
उस शाम मैं देखूँगी तुम्हारे अन्तस के उद्गार से निकलता लावा फैलता मेरी आँखों में
और घोल आऊँगी अपनी आँखों का लवण अरब सागर के नीले जल में 
क्या तुम्हें तैरना आता है प्रिय?

जानते हो प्रिय, तुम्हारा होना है किसी प्रारब्ध सा मेरे लिए 
तुम्हारे नहीं होने की आशंका से मैं लौट जाना चाहती हूँ सिंधु घाटी सभ्यता में 
और पूछना चाहती हूँ मोहन जोदड़ो की कांस्य मूर्ति से तुम्हारा पता 
ठहर के देखना चाहती हूँ तुम्हारे मिल जाने पर उसी की मुद्रा में, फिर खो जाना चाहती हूँ उसी की तरह 
तुम्हें दिशाओं का बोध तो होगा न प्रिय?

देख लेना प्रिय, एकदिन तुम करोगे मुझे प्रतिष्ठित ह्रदय में लिए अपार श्रद्धा  
कि जान जाओगे माया से घिरे इस संसार में मैं बनी रही तुम्हारी छाया 
करना स्नान स्नेह के जल में, ओढ़ लेना प्रेम, ध्यान को करना अर्पित नयन कमल
कर देना विसर्जित निज को उस रोज प्रेम के पावन सिन्धु में, अनुष्ठान पूरा कर लेना  
प्रेम और पूजा की विधि अलग तो नहीं होती न प्रिय?

प्रिय, क्या तुम जानते हो मुझे सबसे अधिक तुम हो प्रिय?



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