Monday, July 28, 2014

ईद मुबारक

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दुनिया भर की तमाम कहानियों में
एक सुन्दर सी कहानी है शायमा अल-मसरी भी 
और किसी लघुकथा की तरह है उसका बचपन
जो अचानक से खो गया है
इजराइल और फिलिस्तीन के युद्ध के पन्नों में
जबकि सबसे बड़ा मुद्दा होना था
उसके बचपन का छीन लिया जाना
उसका बचपन दब गया है
अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक खबरों के मलबे के नीचे 


जहाँ उसे ब्याहना था अपनी गुड़िया को
बिलाल के गुड्डे के साथ
हो गया रुखसत बिलाल इस जहान से अम्मी के साथ
और शायमा पड़ी है खून से लथपथ अस्पताल के किसी कोने में
लिए अपने पास दुल्हन सी सजी गुड़िया


नहीं समझ पा रही कि कुछ भी कर ले अब
नहीं लौटेगी अम्मी कभी
कि अब वह रहेंगी यादों के आसमान में
बनकर सबसे ज्यादा चमकनेवाला सितारा
जिसे चाहकर भी नहीं मिटा पाएगी
यहूदियों और फिलिस्तिनो की आपसी रंजिश
जो बनी रहेगी सुर्खियाँ अखबारों की एक लम्बे अरसे तक


उधर फरमान सुनाया है इजरायल की आएलेत शकेद ने
कि ख़त्म कर देना है फिलिस्तीन की सभी माँओं को
कि नहीं जन्मे छोटे सांप फिर कभी फिलिस्तीन में
जहाँ मुहर्रम सा बनकर आया है अबके बरस ये ईद
अब्बा के गले लग शायमा ईदी में अम्मी को मांगती है
आज दुनिया भर की अखबारों ने "ईद मुबारक" लिखा है
मैंने अपनी दुआ में शायमा के लिए न'ईम पढ़ा
ईद जिनकी मुबारक है, होती रहे !!!!


------सुलोचना वर्मा-------

 

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