Saturday, July 12, 2014

कवि की कविता

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कवि को लिखना है काजल, उमस भरे एक दिन को 
कविता समेट लेती है बादल अपनी आँखों में  
दमक उठता है प्रेम का सूरज आसमान पर
कवि बारिश की चाह करता है


कवि दर्ज करता है चुम्बन प्रेयसी की गर्दन पर
और खोल देता है क्लचर बालों से
कविता महसूस करती है फिसलते हुए बालों को काँधे पर
फिर चखती है कवि की जुबान का स्वाद देर तक


कवि छेड़ देता है साज निर्वसना की देह का
कविता गुनगुनाने लगती है अवरोह से आरोह तक
किल्लोल भरती हैं प्रेयसी के पैरों की उंगलियाँ
रिसने लगता है प्रेम रसायन बन देह से  
कवि साधता है सांप्रयोगिक तंत्र प्रेयसी पर 
कविता झूमने लगती है चरमोत्कर्ष की सीमा पर
प्रेयसी के पंख फहराने लगते हैं
मंत्रमुग्ध कर जाता है कवि को
कविता का अनवरत लयबद्ध स्पंदन
कवि लिखता है पूर्णविराम
प्रेयसी की पीठ के बाएँ हिस्से में


कवि अब कविता नहीं लिखता
लिखता है प्रेम !


----सुलोचना वर्मा-------

2 comments:

  1. प्रेम के बाद शायद कविता लिखे !!

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  2. वर्ड वेरिफिकेशन हटा लीजिये, पाठक के लिए अच्छा रहेगा

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