Tuesday, August 12, 2014

पुनर्जन्म

-------------------------
समझते थे लोग सिद्धांत पुनर्जन्म का
इस देश से लेकर सात समंदर पार तक
कि स्कित्जोफ्रेनिया का आविष्कार नहीं हुआ था तब


तब पेड़ से सेब के नीचे गिरने के लिए 
गुरुत्वाकर्षण के नियम की नहीं
जरुरत होती थी भगवान् की मर्ज़ी की


विश्वास से उत्पन्न हुई सकारात्मकता
देती चली गई साल दर साल 
शुभ और सुखद परिणाम


और भगवान् ??
उसके तो कई टुकड़े किये गए थे
हुआ था जब जन्म मनुष्य में विवेक का
फिर वो रह गया दर्ज़ होकर दंतकथाओं में 
उसे भी लेने पड़े कई जन्म
अपना आस्तित्व बचाए रखने की खातिर 


सबको पड़ी थी जन्मों के फेर की
कि लिखा था गीता में
आत्मा अमर है


जीता रहा इंसान किश्तों में बनकर संतोषी
तय हुआ कि दुःख है परिणाम पिछले जीवन के कर्मों का
और करता रहा अच्छे कर्म अगले जनम के लिए


जन्म लेती रही एक इच्छा मानव शरीर में
हर बार एक नया जन्म लेने की
और हर जन्म के साथ ही
होता रहा जन्म नयी-नयी इच्छाओं का
जन्म और मरण से इतर


पूरी हो जाती है कई इच्छाएं एक ही जीवन में कभी तो
लेना पड़ता है कई जन्म उस एक इच्छा के लिए
जिसके कभी ना पूरा होने की कहानियाँ
हम दंतकथाओं में सुनते आये हैं


-----सुलोचना वर्मा---------
 

No comments:

Post a Comment