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लेकर जाते रहे जहाँ हम अपनी फरियाद
रही हमारे जीवन में किसी मंदिर जैसी माँ
पिता हुए तीर्थ स्थल जीवन की धरती पर
कि पूरी हुई हमारी जितनी माँगें थीं वहाँ
दुनिया में थी भीड़ और भटक जाना था तय
फिर माँ जैसा कोई अवलम्ब होता है कहाँ
हम भूले, हम भटके, फिर घर को भी लौटे
कि पिता नाम का मानचित्र अंकित रहा यहाँ
-----सुलोचना वर्मा-----
लेकर जाते रहे जहाँ हम अपनी फरियाद
रही हमारे जीवन में किसी मंदिर जैसी माँ
पिता हुए तीर्थ स्थल जीवन की धरती पर
कि पूरी हुई हमारी जितनी माँगें थीं वहाँ
दुनिया में थी भीड़ और भटक जाना था तय
फिर माँ जैसा कोई अवलम्ब होता है कहाँ
हम भूले, हम भटके, फिर घर को भी लौटे
कि पिता नाम का मानचित्र अंकित रहा यहाँ
-----सुलोचना वर्मा-----
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