Wednesday, August 5, 2015

इरोम चानू शर्मीला

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हौआ नहीं होता है मौत का आना
आप हो सकते हैं खर्च ठीक उसी तरह
जैसे खराब नल से टपकता है पानी


मृत्यु है जैसे कोई एक मछुआरा
जिसने फैला रखा है जाल हर तरफ
जल थल और आसमान तक में
आप मर सकते हैं बिना किसी योजना के
बस, ट्रक या मोटर कार के नीचे आकर
या फिर उतर सकती है पटरी से रेलगाड़ी
जिसमें आप इस वक्त सफर कर रहे हैं
फिर आम है विमान का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना


हौआ नहीं होता है मौत का आना
आप हो सकते हैं खर्च ठीक उसी तरह
जैसे खराब नल से टपकता है पानी


चकित करता है मुझे अक्सर जिंदा रहना
उस बहादुर स्त्री इरोम चानू शर्मीला का
जिसने किया है इनकार मर-मर कर जीने से
और मर रही है हर पल जी-जी कर
जैसे उँगलियों को चाट रही हो खाने के बाद
कुछ इस तरह स्वाद ले रही जीवन का


जहाँ हममें से अधिकांश बीता रहे हैं जीवन
वह कह सकती है कि उसने इसे जीया सार्थकता से
बिस्कुट के छोटे - बड़े टुकड़ों की तरह नहीं
बल्कि पान की गिलौरी की तरह चबाकर


मुझे वह किसी किसान की तरह लगती है
जो रोप रही है बीज जीवन में आशाओं के
उसकी सोच जो है किसी पारसमणि के समान
मैं चाहती हूँ जा टकराए नियति का पत्थर उससे
और सोने सा चमक उठे मानवता का चेहरा


हौआ नहीं होता है मौत का आना
आप हो सकते हैं खर्च ठीक उसी तरह
जैसे खराब नल से टपकता है पानी


---------सुलोचना वर्मा -----------

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