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सावन रहा और रही बारिश
रही मैं और रहा मेरा छाता
जो रहा मुझे इतना प्रिय
कि बारिशों से मैं छाते को बचाती रही
और मुझे बारिशों से प्रेम सा होता रहा
अंतस रहा कि भींगता ही रहा
कि मन के पास नहीं रहा छाता
सिहरन भर बस कुछ बूंदें ही रहीं
रहीं जो उभरती त्वचा पर बारहा
बारिश जो रही कभी गुल
तो कभी मेहरबान रही
एक विश्वास रहा फिर भी
जो छाता बन तना रहा
----सुलोचना वर्मा ------
सावन रहा और रही बारिश
रही मैं और रहा मेरा छाता
जो रहा मुझे इतना प्रिय
कि बारिशों से मैं छाते को बचाती रही
और मुझे बारिशों से प्रेम सा होता रहा
अंतस रहा कि भींगता ही रहा
कि मन के पास नहीं रहा छाता
सिहरन भर बस कुछ बूंदें ही रहीं
रहीं जो उभरती त्वचा पर बारहा
बारिश जो रही कभी गुल
तो कभी मेहरबान रही
एक विश्वास रहा फिर भी
जो छाता बन तना रहा
----सुलोचना वर्मा ------
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