Friday, September 11, 2015

हवा का रुख बदल रहा है

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हवा का रुख बदल रहा है!
बता गये लौटते हुये ओखला विहार के प्रवासी पक्षी
हरे-भरे पेड़, जो काटे गये रोजगार के नाम पर
काटे जाने से पहले बता गये कि रुख बदल रहा है!
कह गयी पुरवैया चुपके-चुपके से कानों में
कि देखो- हवा का रुख बदल रहा है!
सुबह और शाम निरन्तर बढ़ती धुएं की मोटी परत
जो कि हासिल है विकास की, चिढ़ा कर कहती है
बदल रहा है! बदल रहा है!
हवा का रुख बदल रहा है!

खेतों में लगा प्याज कह रहा है टमाटर से
बदल रहा है! हवा का रुख बदल रहा है!
हरे खेतों पर उग आये कंक्रीट के जंगल
कब से बता रहे हैं  --- बदल रहा है!
धुंधलाता तारा, बाउल का इकतारा 
सभी तो कह रहे हैं  --- बदल रहा है!
बदल रहा है! बदल रहा है!
हवा का रुख बदल रहा है!

गँवायी जिन्होंने जमीन भूमि अधिग्रहण में
बसी रही गरीबी जिनके घर के हर कण में
उन्हें तो पता है --- बदल रहा है!
चाय बगान के दरवाजों पर लटकते ताले
खाने को नहीं जिनके सूखी रोटी के निवाले
उन्हें तो पता ही है --- बदल रहा है!
बदल रहा है! बदल रहा है!
हवा का रुख बदल रहा है!

पत्रिकाओं में कवि और अखबार की छवि
सभी बता रहे हैं  --- बदल रहा है!
इस दौर का खुलूस, सड़कों का जुलूस
बता रहा है  --- बदल रहा है!
विचार अक्षुण्ण, बुद्धिजीवी का खून
कह रहा है --- बदल रहा है!
बदल रहा है! बदल रहा है!
हवा का रुख बदल रहा है!

-------सुलोचना वर्मा------------

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