Wednesday, September 9, 2015

आखिरी संवाद

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उस आखिरी संवाद में उसने खर्चे 
शब्दकोष के सबसे सधे हुए शब्द
की प्रेम की सबसे सुन्दर व्याख्या
सम्बन्ध को कहा प्रकृति का प्रारब्ध


खर्चे हुए शब्दों में थी गरमाहट
डेगची से निकलती भाप जितनी
प्रेम की व्याख्या में थी मादक गंध
होती है जैसी हिरण की कस्तूरी में 


सम्बन्ध को रखा उसने वक़्त के सरौते पर
कसैला ही निकलना था झूठ की कसैली को
देखा गया है ऐसा युगों से कि होता है अक्सर

विश्वासघात का प्रारब्ध ही सच्चे प्रेम की नियति

-----सुलोचना वर्मा------

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