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पड़ जाते थे बल पिता की पेशानी पर उन दिनों
सोचते हुए हमारे उज्जवल भविष्य के विषय में
पर हम नहीं देख पाते थे चिन्ता उन रेखाओं में
और करते थे याद मानचित्र पर बनी कर्क रेखा को
उन दिनों हमारी समस्त चिन्तायें करती थी वास
पृथ्वी की उत्तरतम काल्पनिक अक्षांश रेखा पर
जिसपर चमकता है सूर्य लम्बवत दोपहर के समय
तब आकाश के चाँद से लेकर परियों के देश तक
भौगोलिक हुआ करती थीं हमारी तमाम समस्यायें
पिता के मेहनत से जमा हुई सिक्कों की रेजगारी
तो हमारे रंगीन सपनों में उग आये ऊँचे पहाड़
वह दूरदृष्टि ही थी किसी उपत्यका में बसे पिता की
कि हम लाँघ सके चुनौतियों की कई पर्वत श्रृखला
अब, जबकि समय बह गया है पानी की तरह
सोच रही हूँ इस जीवन के डमरुमध्य में खड़ी मैं
पिता ने जोड़े थे परिश्रम की दोमट मिट्टी के कण
तब जाकर कहीं उर्वरा हुई हमारी जीवन की जमीन
याद नहीं रहता मुझे कोई भी मानचित्र आजकल
जब भी देखती हूँ अब, मुझे पिता ब्रह्माण्ड लगते हैं|
-------सुलोचना वर्मा---------
पड़ जाते थे बल पिता की पेशानी पर उन दिनों
सोचते हुए हमारे उज्जवल भविष्य के विषय में
पर हम नहीं देख पाते थे चिन्ता उन रेखाओं में
और करते थे याद मानचित्र पर बनी कर्क रेखा को
उन दिनों हमारी समस्त चिन्तायें करती थी वास
पृथ्वी की उत्तरतम काल्पनिक अक्षांश रेखा पर
जिसपर चमकता है सूर्य लम्बवत दोपहर के समय
तब आकाश के चाँद से लेकर परियों के देश तक
भौगोलिक हुआ करती थीं हमारी तमाम समस्यायें
पिता के मेहनत से जमा हुई सिक्कों की रेजगारी
तो हमारे रंगीन सपनों में उग आये ऊँचे पहाड़
वह दूरदृष्टि ही थी किसी उपत्यका में बसे पिता की
कि हम लाँघ सके चुनौतियों की कई पर्वत श्रृखला
अब, जबकि समय बह गया है पानी की तरह
सोच रही हूँ इस जीवन के डमरुमध्य में खड़ी मैं
पिता ने जोड़े थे परिश्रम की दोमट मिट्टी के कण
तब जाकर कहीं उर्वरा हुई हमारी जीवन की जमीन
याद नहीं रहता मुझे कोई भी मानचित्र आजकल
जब भी देखती हूँ अब, मुझे पिता ब्रह्माण्ड लगते हैं|
-------सुलोचना वर्मा---------
nice mam
ReplyDeletewww.nakshatralok.com