--------------------------------------------------
मुझे होना था किसी चट्टान की तरह
कि तोड़ पाती तुम्हारे दर्प के आईने को
और तुम देख पाते अपना खण्डित प्रतिबिम्ब
काँच के हर टुकड़े में अपनी ही आँखों से
फिर कहते मन ही मन उठाते हुए कोई टुकड़ा
ओह! तो ये मेरे पाप का उनहत्तरवाँ हिस्सा है!!
हो सकती थी मैं कोई ऐसी शक्तिशाली लहर
जो बहा ले जाती तुम्हारे भय की जलकुम्भी को
और सौंप आती उसे समयपुरुष के पास
कि तुम जान पाते नहीं होता है कठिन इतना भी
वैतरणी पार करना और मुक्त हो जाना दुविधा से
फिर तुम कहते- ओह! तो मैं कैद था अब तक!!
समय के आईने में देखा कि तुम्हारा दर्प पहाड़ था
तुम्हारे भय के समंदर में मैं बह गयी बन जलकुम्भी
समयपुरुष मुझे सौंप आया, मेरे सामने संसार था
सुनो! मुझे प्रेम का बिरवा बोना था, हाँ मुझे होना था!!!
------सुलोचना वर्मा------
मुझे होना था किसी चट्टान की तरह
कि तोड़ पाती तुम्हारे दर्प के आईने को
और तुम देख पाते अपना खण्डित प्रतिबिम्ब
काँच के हर टुकड़े में अपनी ही आँखों से
फिर कहते मन ही मन उठाते हुए कोई टुकड़ा
ओह! तो ये मेरे पाप का उनहत्तरवाँ हिस्सा है!!
हो सकती थी मैं कोई ऐसी शक्तिशाली लहर
जो बहा ले जाती तुम्हारे भय की जलकुम्भी को
और सौंप आती उसे समयपुरुष के पास
कि तुम जान पाते नहीं होता है कठिन इतना भी
वैतरणी पार करना और मुक्त हो जाना दुविधा से
फिर तुम कहते- ओह! तो मैं कैद था अब तक!!
समय के आईने में देखा कि तुम्हारा दर्प पहाड़ था
तुम्हारे भय के समंदर में मैं बह गयी बन जलकुम्भी
समयपुरुष मुझे सौंप आया, मेरे सामने संसार था
सुनो! मुझे प्रेम का बिरवा बोना था, हाँ मुझे होना था!!!
------सुलोचना वर्मा------
No comments:
Post a Comment