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पहले उन्होंने छीन लिए शब्द
फिर लगाईं लगाम भाषा पर
जकड़ा कई दफे बेड़ियों में
बदल दिए जाने की आशा पर
ये अभिव्यक्ति की आजादी के सैनिक थे
नहीं सीख पाए भ्रष्ट कौम की बोली
उन लोगों के पास थी सत्ता और बंदूकें
और उन बंदूकों में भरी हुई थी गोली
टक्कर थी कलम और तलवार की
कहीं खून तो कहीं स्याह मचलता था
चंद भेड़ियों की हरकतों पर सर झुकाए
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड चलता था
नहीं होता है कभी पराजित इस धरती पर
बारूद की गंधस्मृति से फूलों का सुवास
ढह जाता है जबकि विचारों के कपूर मात्र से
भेड़ियों के महलों के सिंहद्वार पर टंगा विश्वास
------सुलोचना वर्मा ------
पहले उन्होंने छीन लिए शब्द
फिर लगाईं लगाम भाषा पर
जकड़ा कई दफे बेड़ियों में
बदल दिए जाने की आशा पर
ये अभिव्यक्ति की आजादी के सैनिक थे
नहीं सीख पाए भ्रष्ट कौम की बोली
उन लोगों के पास थी सत्ता और बंदूकें
और उन बंदूकों में भरी हुई थी गोली
टक्कर थी कलम और तलवार की
कहीं खून तो कहीं स्याह मचलता था
चंद भेड़ियों की हरकतों पर सर झुकाए
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड चलता था
नहीं होता है कभी पराजित इस धरती पर
बारूद की गंधस्मृति से फूलों का सुवास
ढह जाता है जबकि विचारों के कपूर मात्र से
भेड़ियों के महलों के सिंहद्वार पर टंगा विश्वास
------सुलोचना वर्मा ------
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