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मैं कोई तैराक नहीं थी
न ही किसी मछली ने बताया था मुझे अपना प्रिय जल-स्त्रोत
मेरे पास थी बस तुम्हारी दो आँखें और कुछ नीले सपने
मैं अनाड़ी सीख रही थी तैरना तुम्हारे खारेपन के साथ
जाल-बद्ध किया वक्त के मछुआरे ने !
नहीं थी मैं नदी में बहती हुई लाश ही
जो हो किसी अनजान यात्रा पर
बस तुम्हारे होने भर से होती रही आंदोलित मेरी गति
और मैंने बहकर पार की गंतव्यहीन दूरियाँ
अब तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठी हूँ दिशाहीन!!
अब मेरा "मैं", जो नहीं है कोई कहानीकार
लिखना चाहता है एक ऐसी कहानी
जिसमें मछली की तड़प पर तड़प उठे मछुआरा वक़्त का
और जब बंद होने लगे मेरी थकी हुई प्रतीक्षारत आँखें
ढूँढने निकल पड़े तुम्हे संसार के समस्त गंतव्यहीन रास्ते!!!
नहीं होता "असंभव" जैसा कोई शब्द प्रेम के शब्दकोष में !
-----सुलोचना वर्मा------------
मैं कोई तैराक नहीं थी
न ही किसी मछली ने बताया था मुझे अपना प्रिय जल-स्त्रोत
मेरे पास थी बस तुम्हारी दो आँखें और कुछ नीले सपने
मैं अनाड़ी सीख रही थी तैरना तुम्हारे खारेपन के साथ
जाल-बद्ध किया वक्त के मछुआरे ने !
नहीं थी मैं नदी में बहती हुई लाश ही
जो हो किसी अनजान यात्रा पर
बस तुम्हारे होने भर से होती रही आंदोलित मेरी गति
और मैंने बहकर पार की गंतव्यहीन दूरियाँ
अब तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठी हूँ दिशाहीन!!
अब मेरा "मैं", जो नहीं है कोई कहानीकार
लिखना चाहता है एक ऐसी कहानी
जिसमें मछली की तड़प पर तड़प उठे मछुआरा वक़्त का
और जब बंद होने लगे मेरी थकी हुई प्रतीक्षारत आँखें
ढूँढने निकल पड़े तुम्हे संसार के समस्त गंतव्यहीन रास्ते!!!
नहीं होता "असंभव" जैसा कोई शब्द प्रेम के शब्दकोष में !
-----सुलोचना वर्मा------------
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