--------------------------------
मैं किसके जैसी दिखती हूँ?
मैं किसी के जैसी नहीं दिखती
हाँ, एक आईना है मेरे कमरे में
जो दिखता है कुछ-कुछ मेरे जैसा
देखती हूँ जब-जब मैं यह आईना
ढूँढने लगती हूँ दरार इसमें भी
टटोलती हूँ छूकर इसकी सतहों को
क्या दिया है खुरदुरापन वक़्त ने इसे भी
मेरी हरकतों पर हँस देता है ठठाकर
आईना और कुछ भी नहीं कहता
समझाता हो जैसे, यह वह जगह है जहाँ
होती है जिस्म कैद, दिल नहीं रहता
---सुलोचना वर्मा -----
मैं किसके जैसी दिखती हूँ?
मैं किसी के जैसी नहीं दिखती
हाँ, एक आईना है मेरे कमरे में
जो दिखता है कुछ-कुछ मेरे जैसा
देखती हूँ जब-जब मैं यह आईना
ढूँढने लगती हूँ दरार इसमें भी
टटोलती हूँ छूकर इसकी सतहों को
क्या दिया है खुरदुरापन वक़्त ने इसे भी
मेरी हरकतों पर हँस देता है ठठाकर
आईना और कुछ भी नहीं कहता
समझाता हो जैसे, यह वह जगह है जहाँ
होती है जिस्म कैद, दिल नहीं रहता
---सुलोचना वर्मा -----
Superb!!
ReplyDelete