Friday, January 30, 2015

सप्तर्षि

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मेरे जीवन में रह गए हैं कुछ अनुत्तरित सवाल 
और मेरे ऊपर है विस्तार असीम आकाश का
जहाँ मौजूद अनेकों नक्षत्रों में है एक सप्तर्षि
बनाता है जो आकार प्रश्नवाचक चिन्ह जैसा 
दरअसल है मेरा अपना सवाल आकाश पर 
और जब कभी भी जिंदगी लेती है इम्तिहान
मैं जानती हूँ आते हैं सारे प्रश्न उसी सप्तर्षि से


अक्सर रात में जब होती हूँ खड़ी मैं अपने घर के बाहर
मेरे सिर से नब्बे अंश का कोण बनाता होता है वह भी
जानती हूँ कि हो जाएगा हल यह प्रश्न शाश्वत होकर भी
ज्यूँ ले जाएगा समय मौसम को वैशाख के महीने में
हल मिलता जाएगा कुछ एक सवालों का जीवन में भी
कि यह वही प्रश्न है जो रहता है इस गोलार्ध के उत्तर में


----सुलोचना वर्मा-----

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