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जलायी है मशाल किसी हरिया ने आज़ादी की
जहाँ आग की लपटें गाती हैं गीत मुक्ति का
मुक्ति दर्द और भूख से,अभाव और निराशा से
नुकसान से और लाभ से,नस्ल और क्रोध से
विफलता और सफलता से,वर्तमान और अतीत से
संघर्ष और युद्ध से, लालच से और वासना से
अज्ञानता से और किसी अनभिज्ञ परिस्थिति से
नफरत से और ईर्ष्या से, गरीबी और बीमारी से
गलत और अपराध से,अन्धकार और अहंकार से
गाती है गीत कोई राफ़िया बानो स्वतंत्रता का
जिसमे लयबद्ध शब्द छेड़ते हैं तान आज़ादी की
आज़ादी भ्रम और बंधन से मुक्ति की
जीवन का आनंद लेने की और खुश रहने की
ज्ञान प्राप्त करने की और विकसित होने की
सोच पाने की और घटनाओं का संज्ञान लेने की
खतना नहीं करवाने की और गर्भ धारण करने की
स्वयं के निर्णय के आधार पर कार्य कर पाने की
स्वतंत्रता चुनने की और अस्वीकार कर पाने की
जो हम किसी प्रकार के भेद से परे होते केवल मनुष्य
तो फिर दरकार होती हमें बस ऐसी स्वतंत्रता की
जो हमें वो ही बने रहने दे जो हम असल में हैं
फिर हमारे पास होती स्वतंत्रता स्वाभिकता की
जीने की और मरने की, हँसने की और रोने की
बात करने और सुनने की, प्यार करने और शांति की
संक्षिप्त में कहें तो अपने ढंग से जीवन जी लेने की
हाँ, हम सब हैं ग़ुलाम कि नहीं रह सके स्वाभाविक
जबकि हम हैं वासी लोकतंत्रात्मक स्वतंत्र देश के
और है कहने को हमारा भी अपना एक संविधान
जो देता है हमें स्वतंत्रता विचारों की अभिव्यक्ति की
जो करता है बातें राष्ट्र की एकता और अखण्डता की
व्यक्ति की गरिमा की और प्रतिष्ठा की समता की
फिर हो जाता है परतंत्र अपने ही अनुच्छेदों में
और करता है लम्बा इंतज़ार उसमे संशोधन का
कायम रहती है ऐसे सम्प्रुभता हमारे गणराज्य की
----सुलोचना वर्मा---------
जलायी है मशाल किसी हरिया ने आज़ादी की
जहाँ आग की लपटें गाती हैं गीत मुक्ति का
मुक्ति दर्द और भूख से,अभाव और निराशा से
नुकसान से और लाभ से,नस्ल और क्रोध से
विफलता और सफलता से,वर्तमान और अतीत से
संघर्ष और युद्ध से, लालच से और वासना से
अज्ञानता से और किसी अनभिज्ञ परिस्थिति से
नफरत से और ईर्ष्या से, गरीबी और बीमारी से
गलत और अपराध से,अन्धकार और अहंकार से
गाती है गीत कोई राफ़िया बानो स्वतंत्रता का
जिसमे लयबद्ध शब्द छेड़ते हैं तान आज़ादी की
आज़ादी भ्रम और बंधन से मुक्ति की
जीवन का आनंद लेने की और खुश रहने की
ज्ञान प्राप्त करने की और विकसित होने की
सोच पाने की और घटनाओं का संज्ञान लेने की
खतना नहीं करवाने की और गर्भ धारण करने की
स्वयं के निर्णय के आधार पर कार्य कर पाने की
स्वतंत्रता चुनने की और अस्वीकार कर पाने की
जो हम किसी प्रकार के भेद से परे होते केवल मनुष्य
तो फिर दरकार होती हमें बस ऐसी स्वतंत्रता की
जो हमें वो ही बने रहने दे जो हम असल में हैं
फिर हमारे पास होती स्वतंत्रता स्वाभिकता की
जीने की और मरने की, हँसने की और रोने की
बात करने और सुनने की, प्यार करने और शांति की
संक्षिप्त में कहें तो अपने ढंग से जीवन जी लेने की
हाँ, हम सब हैं ग़ुलाम कि नहीं रह सके स्वाभाविक
जबकि हम हैं वासी लोकतंत्रात्मक स्वतंत्र देश के
और है कहने को हमारा भी अपना एक संविधान
जो देता है हमें स्वतंत्रता विचारों की अभिव्यक्ति की
जो करता है बातें राष्ट्र की एकता और अखण्डता की
व्यक्ति की गरिमा की और प्रतिष्ठा की समता की
फिर हो जाता है परतंत्र अपने ही अनुच्छेदों में
और करता है लम्बा इंतज़ार उसमे संशोधन का
कायम रहती है ऐसे सम्प्रुभता हमारे गणराज्य की
----सुलोचना वर्मा---------
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