Wednesday, July 18, 2018

एक छटाक सुख के लिए

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हुगली किनारे टहलते हुए नदी से मैंने पूछा 
पवित्र नदी क्या तुम मुझे दे सकती हो एक छटाक सुख ?
नदी ने कहा यदि घूम सको मेरी लहरों का जनपद 
और पढ़ सको उन लहरों पर लिखा जल काव्य 
तो शायद महसूस कर सको एक किस्म का सुख !

फिर वहीं उड़ते राम चिरैया से मैंने पूछा 
प्रिय पक्षी क्या तुम दे सकते हो मुझे एक छटाक सुख ?
राम चिरैया ने गाते हुए कहा कि बता सको अगर 
कौन सा राग गा रहा हूँ इस वक्त मैं 
तो शायद महसूस कर सको एक किस्म का सुख !

अंततः पास छवि आँकते एक चित्रकार से  मैंने पूछा 
हे चित्रकार ! क्या तुम दे सकते हो मुझे एक छटाक सुख ?
उसने मुझे थोड़ी देर देखा और फिर कहा 
तुम्हारे अधरों के हर कोण पर है अग्नि स्रोत  
अगर मुझे छूने दो अपने अधर पल्लव 
बाहर से निस्तेज होकर जल उठोगी अंदर से 
तो शायद महसूस कर सको एक किस्म का सुख !

अपने दुखों से हो भयाक्रांत मैं भटकती रही ताउम्र 
बस एक छटाक सुख के लिए 
जबकि मेरे आसपास ही था मौज़ूद किस्म-किस्म का अदृश्य सुख !

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