Friday, July 27, 2018

दुःस्वप्न

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उसने देखा बैठक कक्ष में दीवान पर उसके पति के पास उसका देवर बैठा है जो उसकी बेटी के साथ खेल रहा है| पास सोफे पर उसके कॉलेज का दोस्त कुंदन बैठा है| वो सभी धीमे-धीमे आपस में बात कर रहे हैं जो वह नहीं सुन पा रही है क्यूँकि वह कुछ दूरी पर खड़ी है| कोई आकर कुंदन के लिए खाना पड़ोस गया और वह खाने में मशगुल हो गया | माहौल में एक किस्म की उदासी पसरी हुई दिख रही है| वह कुछ देर उन्हें निर्विकार देखती रही | फिर उसने देखा कि कुंदन खाना समाप्त कर हाथ धोने के लिए उठकर सीधा उस ओर आ रहा है जहाँ वह खड़ी है| कुंदन ने वाश बेसिन का नल खोला, हाथ धोया और नल बंद करते हुए जैसे ही उसकी नजर बाथरूम की बायीं ओर गयी, वह पहले चौंका और फिर बुरी तरह डर गया | वह इतनी बुरी तरह डर गया कि हड़बड़ी में बाथरूम से निकलकर किसी से बिना कुछ कहे घर से निकल गया | वह कुछ देर सोचती रही कि कुंदन उसे देख क्यूँ डर गया और फिर उसे याद आया कि उसकी मौत को अभी कुछ ही दिन बीते हैं| वह कुंदन से कुछ कहना चाह रही थी, इसलिए उसके पीछे दौड़ पड़ी | कुंदन अपनी गाड़ी में बैठ चुका था | वह पसीने से तर हो रहा था | उसने कार स्टार्ट किया तो अचानक से हर ओर धुँआ -धुँआ  हो गया | वह उस धुएँ की ओर बढ़ ही रही थी कि तभी कामवाली ने घर का बेल बजा दिया और वह नींद से जाग गयी | जागते ही सबसे पहले पास सोई बेटी को छूकर देखना चाहा कि तभी उसे याद आया कि उसकी तो कोई संतान ही नहीं है |  दो मिनट हथेलियों पर अपना माथा टिका कर बैठी रही और फिर वह दरवाजा खोलने चली गयी | दरवाजा खोलकर वहाँ तब तक खड़ी रही जब तक कि कामवाली ने उससे यह नहीं कहा "लगता है आपकी नींद पूरी नहीं हुई"

"ओह ! तो वो एक दुःस्वप्न था और मैं जिंदा हूँ" उसने दीर्घ निश्वास लेते हुए खुद से कहा और मेज पर रखे बोतल का पानी एक साँस में पी गयी |

नींद से जाग जाने के बावजूद सपने में देखा हर दृश्य रील दर रील उसकी स्मृति में ताज़ा था | वह बैठक कक्ष के दीवान पर जा बैठी | उसने देखा कि मेहमानों के लिए बने बाथरूम से दीवान पर बैठे शख्स को नहीं देखा जा सकता था और यह भी कि सपने में देखे गए घर से वह घर अलग था | उसने यूरोप के किसी देश में पढ़ाई कर रहे अपने इकलौते देवर से फोन पर कुशलक्षेम पूछा | फिर उस दुःस्वप्न से अपना ध्यान हटाने के लिए उसने टीवी पर थोड़ी देर समाचार देखा और फिर नहा-धो कर तैयार हो नाश्ते के बाद दफ्तर के लिए निकल गयी |

दोपहर में उसने थोड़ा असहज महसूस किया | भीषण उमस में भी उसे ठंड लग रही थी | जब ठंड लगने और तबियत खराब रहने का सिलसिला कई रोज़ चला तो डॉक्टर के पास हो आई | कई प्रकार के रक्त जाँच के बाद उसके गर्भवती होने की पुष्टि हुई | नौ कठिन महीनों के बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया | बीते नौ महीनों में उसने कई बार कई अच्छे-बुरे स्वप्न देखे पर वह दुःस्वप्न उसे रह-रह कर याद आता | वह अपना दुःस्वप्न पति से जब भी साझा करती, वह इसे दुःस्वप्न बता उसे भूल जाने की सलाह देता |

घर-गृहस्थी, नौकरी और बेटी के बीच जिंदगी ऐसी उलझी कि समय कब पानी की तरह बह गया, उसे पता ही न चला | उसकी बेटी अब तीन साल की हो चुकी थी और घर की दीवारों पर रंगीन पेन्सिल  से कई प्रकार की आकृतियाँ बना चुकी थी | इसी क्रम में एक रोज़ मकान मालिक आ धमका और घर की दीवारों का हुलिया देख उसे दूसरा घर तलाश लेने को कहा | अगले दो महीनों के बाद अब वह  पड़ोस के नए घर में थी | किराये के इस नए घर को देखने जब वह पहली बार गयी थी, उसी दिन उसने उस घर का दुःस्वप्न में देखे गए घर से मिलान किया था और दोनों में कई अंतर देखने के बाद ही उस घर में जाने का निर्णय लिया था | नया घर बड़ा था | बेटी अब स्कूल जाने लगी थी | धीरे-धीरे जरूरतों के बढ़ते ही घर का सामान भी बढ़ने लगा | उसने तय किया कि उसका भी अपना एक स्थायी घर होना चाहिए | पति और पत्नी ने मिलकर घर ढूँढने का अभियान चलाया और कुछ महीनों के बाद शहर के दूसरी छोर पर उन्हें अपने नए घर का पता मिल चुका था | कागज पर बने नक़्शे को देख फ्लैट बुक कर लिया था | निर्माण कार्य पूरा होने में अभी दो साल बाकी था | 

इन दो सालों में पति-पत्नी ने घर की कई पुरानी चीजों को औने-पौने दामों पर बेच दिया और नए घर के लिए नया सामान खरीदा | जिंदगी मुस्कुरा रही थी, पर दुःस्वप्न था कि स्मृति से मिट ही नहीं रहा था |अंततः वह दिन भी आया जब नया घर बन कर तैयार हुआ | यूँ तो घर के बनने के दौरान वह कई बार वहाँ गयी थी, पर रंग-रोगन होकर दरवाजे और खिडकियों के शीशे लगाये जाने के बाद पहली बार घर में प्रवेश करते ही उसे लगा जैसे वह इस घर में पहले रह चुकी है| उसने सोचा शायद निर्माणाधीन भवन को पहले कई बार देखने की वज़ह से उसे ऐसा लग रहा है| अपने नए घर में सामान व्यवस्थित  करने में उसे काफी वक़्त लगा | एक दिन जब वह बैठक कक्ष में बैठी हुई थी और टीवी में समाचार देख रही थी, उसने ध्यान दिया कि वह वहाँ से मेहमानों के लिए बना बाथरूम दृष्टिगोचर है| फिर वह उस बाथरूम में गयी और पाया कि उस बाथरूम की बनावट ठीक वैसी है जैसा उसने सपने में देखा था | बाथरूम से निकलते हुए उसने देखा कि दक्षिण दिशा में खुलता घर का मुख्य द्वार ठीक वैसा ही है जैसा सपने में था | वह अवाक् भी थी और परेशान भी|  उसने घबराते हुए पति से कहा "सुनो, जानते हो ..."

"यही न कि यह घर बिलकुल वैसा है जैसा तुमने सपने में देखा था ! अच्छा, यह बताओ कि किस दिन मरने वाली हो" पति ने मजाकिया लहजे में कहा | 

"पता है... छोड़ो तुम नहीं समझोगे" कहकर वह चुप हो गयी और खिड़की से बाहर देखने लगी |

दिन, महीने और साल बीतने लगे |  जब दुःस्वप्न ने उसका पीछा न छोड़ा, तो उसने कभी घर का इंटीरियर बदला तो कभी घर के अलग-अलग हिस्सों को पेड़-पौधों से सजाकर उसे एक अलग लुक देने की कोशिश की | कई नौकरियाँ भी बदली | उसका देवर भी विदेश से पढ़ाई पूरी कर वापस लौट आया था और अपना व्यापार कर रहा था |

वह एक उमस भरा दिन था | वह एक गहरी नींद से उठी थी | बेडरूम से बाहर निकलते ही उसने देखा बैठक कक्ष में कुंदन बैठा था | दीवान पर उसके पति के पास उसका देवर बैठा है जो उसकी बेटी के साथ खेल रहा है| कुंदन को देख उसने हाथ हिलाकर अभिवादन किया पर न जाने कुंदन किन ख्यालों में गुम था | वह सर झुकाए बैठा था | वह कुछ देर निर्विकार खड़ी स्थिति को समझने का प्रयास करती रही | उसे न तो कुछ समझ आ रहा था न ही वह कुछ सुन पा रही थी |  उसे लगा यह गहरी नींद का असर है| चेहरा धोने के लिए वह बाथरूम गयी और वहाँ उसने देखा कि शावर से हल्का पानी गिर रहा था | वह शावर को बंद करने की कोशिश कर रही थी पर पानी फिर भी टपक रहा था | थोड़ी देर बाद कुंदन हाथ धोने आया | उसने वाश बेसिन का नल खोला, हाथ धोया और नल बंद करते हुए जैसे ही उसकी नजर बाथरूम की बायीं ओर गयी, वह पहले चौंका और फिर बुरी तरह डर गया | वह इतनी बुरी तरह डर गया कि हड़बड़ी में बाथरूम से निकलकर किसी से बिना कुछ कहे घर से निकल गया | वह कुछ देर सोचती रही कि कुंदन उसे देख क्यूँ डर गया और फिर उसे याद आया कि उसकी मौत को अभी कुछ ही दिन बीते हैं| वह कुंदन से कुछ कहना चाह रही थी, इसलिए उसके पीछे दौड़ पड़ी | कुंदन अपनी गाड़ी में बैठ चुका था | वह पसीने से तर हो रहा था | उसने कार स्टार्ट किया तो अचानक से हर ओर धुँआ -धुँआ हो गया | वह कार की पिछली सीट पर बैठ गयी और कार के रियर व्यू मिरर में देख कुंदन से पूछने लगी "क्या हुआ"

थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि उसकी आवाज कुंदन तक पहुँच ही नहीं रही थी | कुंदन उसे सिर्फ देख पा रहा था | उसे लगा शायद उसकी नींद पूरी नहीं हुई | वह कार से उतर कर सीढियाँ चढ़ती हुई घर आ गयी |  घर का दरवाजा  हल्का सा खुला रह गया था | उसने महसूस किया कि वह उस छोटी सी जगह से बिना किसी परेशानी के अंदर आ गयी थी | अब उसकी नजर बैठक कक्ष के एक कोने में रखे छोटे से मेज पर गयी जहाँ उसकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया था | उसने उस तस्वीर को देखा और मुस्कुराते हुए कहा "उफ़्फ़ ! फिर वही दुःस्वप्न"

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