Wednesday, June 18, 2014

नमक

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हो आई मैं तुम्हारे सपनों की चहारदीवारी से
और टांग आई रूह की कमीज़
उस घर की दीवार पर लगे खूंटे में
कमरे में पसरे मौन ने बढाई
तुम्हारे शब्दों से मेरी घनिष्ठता
जिस वक़्त तुम उकेर रहे थे
मेरा तैलचित्र अपने ख़्वाबों के आसमान पर

टपक पड़ी थी एक बूँद पसीने की
मेरे माथे से तुम्हारी जुबान पर
सुनो, जब भर जाए तुम्हारे ख़्वाबों का कैनवास
उतार लेना मेरी रूह की कमीज़ खूंटे से
और ओढा देना मेरी आकृति को
निभाते रहना वचन ताउम्र साथ देने का
कि तुमने खाया है नमक मेरी देह का |


सुलोचना वर्मा

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