Monday, June 23, 2014

तीस पार की आधुनिका

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जब तीस पार की आधुनिका करती है प्रेम
तो तोड़ देती है सारी वर्जनाएं
उम्र, धर्म और समाज की
और लिख देना चाहती है नाम प्रेमी का
शहर की सबसे ऊँची ईमारत पर
बड़े बड़े काले अक्षरों में
उसी प्रेम को उसका प्रेमी 
धर देता है किताब के पन्नो के बीच
मोर पंख की तरह
फिर हो जाता है व्यस्त
हरे, नीले और सुनहरे रंगों के बीच
और ढूँढने लगता है प्रेम का गुलाबी रंग उसमे


तीस पार की आधुनिका को नहीं पसंद गुलाब
कि उसकी उँगलियाँ डूबी होती है काँटों से मिले लहू में
प्रेमी को कहती है चाँद और महक जाना चाहती है
बनकर प्रेम सा झक्क सफ़ेद इवनिंग प्राइमरोज
मना लेना चाहती है वह उत्सव जिंदगी का


जब देखती है प्रेमी को, बुनती है ख्वाब प्रेम के आसमान पर
उसके ख़्वाबों को चिन्हित करता है आसमान में उड़ता हवाई जहाज
प्रेमिका देखती है हवाई जहाज और फिर देखती है प्रेमी को
प्रेमी कर लेता है कैद प्रेमिका को हवाई जहाज के साथ कैमरे में
ढाई सेकण्ड की इस घटना में पुरे पच्चीस साल फिर से जी लेती है
प्रेम में जवान एक नवयुवती, जो है तीस पार की आधुनिका


सुलोचना वर्मा

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