Friday, June 6, 2014

सच्चाई है माँ

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जब खीझ जाती हूँ किसी पर
तो कहती हूँ "ओह जीसस"
"हे भगवान्" भी कह देती हूँ कभी कभार


जब गर्मी कर देती है पस्त
आवाज़ देती हूँ "अल्लाह" को
और मांगती हूँ पानी जो बरसे बनकर फुहार


पर जब भी गिर पड़ती हूँ खाकर ठोकर
जुबाँ पर होता है जीवन का पहला शब्द
चिल्लाती हूँ "माँ" जब भी होता है अन्धकार


माँ है चट्टानों पर लिखी गई एक दुआ
जिसे पढ़ते हैं सभी धर्मों के लोग
अपनी अपनी भाषा में
ईश्वर अफवाह है; सच्चाई है माँ


सुलोचना वर्मा

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