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जब कविता छपती है अखबारों में
कुछ शब्द जोड़ती है हौंसलों के
अनुभवों के खाते से निकाल कर
जब कविता गाती है किसी गीत समारोह में
तो उम्मीदों को देती है स्वर
अपने अधूरे सपनो से लेकर उधार
पर जब खूबसूरत कविता लौट आती है घर
साहस नहीं रह जाता शेष अनुभवों के खाते में
उम्मीदें दब जाती हैं कर्जदारों के स्वप्निल स्वर में
खत्म हो जाती है इसप्रकार एक बेहतरीन कविता
जिसका छपते रहना और गाते रहना था बेहद ज़रूरी
सुलोचना वर्मा
जब कविता छपती है अखबारों में
कुछ शब्द जोड़ती है हौंसलों के
अनुभवों के खाते से निकाल कर
जब कविता गाती है किसी गीत समारोह में
तो उम्मीदों को देती है स्वर
अपने अधूरे सपनो से लेकर उधार
पर जब खूबसूरत कविता लौट आती है घर
साहस नहीं रह जाता शेष अनुभवों के खाते में
उम्मीदें दब जाती हैं कर्जदारों के स्वप्निल स्वर में
खत्म हो जाती है इसप्रकार एक बेहतरीन कविता
जिसका छपते रहना और गाते रहना था बेहद ज़रूरी
सुलोचना वर्मा
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