Monday, December 1, 2014

बेटियाँ

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हो जाती हैं विदा बेटियाँ मायके से
लेकर संदूक में यादों का जखीरा
जैसे करता है विदा पहाड़ नदी को
और लाती है नदी अपने साथ खनिज


बनाती जैसे डेल्टा नदी समुद्र में मिलने के पूर्व
अनेक शाखाओं में कर स्वयं को ही विभाजित
बाँट लेती हैं बेटियाँ खुद को दो अलग घरों में 
कि ऐसा करना ही होता है उनका तयशुदा धर्म


जहाँ खो देती है नदी अपना मीठा स्वाद
विशाल समंदर के खारे फेनिल जल में
लपेटना होता है अक्सर जुबान पर शहद 
नमकीन पसंद करनेवाली इन बेटियों को


सुनो नदियाँ, तुम नर्मदा सी बन जाओ
कि नहीं बाँटना पड़े खुद को बनाने को डेल्टा
बेटियाँ तुम कहना सीख लो
कि तुम्हे नमकीन है पसंद!!!


----सुलोचना वर्मा ---------

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