Friday, December 5, 2014

झूठा सच

"मैं आपके जैसा साहसी नहीं था कि घरवालों के विरोध के बावजूद अपने पसंद की लड़की से शादी करता | पर रागिनी ने तो पूरा जीवन ही मेरे नाम कर दिया | अब उसके जीवन में मेरे सिवाय कोई नहीं और उसकी देखभाल करना मेरी नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है | अगर आप यह सब सौम्या से कह देती हैं तो मेरा घर टूट जायेगा | ज़रा मेरे बच्चों के बारे में तो सोचिये.......और वैसे भी अब सौम्या जायेगी कहाँ...उसके माता-पिता तो रहे नहीं..सो...." प्रदीप बोलता ही चला गया | उसकी आवाज़ काँप रही थी |

"आपको मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है | यह बात मुझ तक ही रहेगी | शायद मेरे चुप रहने ही में सौम्या की ख़ुशी निहित है" मधुरा ने भारी मन से कहा | पुरे दिन ग्रुप वायलिन की विकल तरंगों के बीच मन
बजता रहा | मन में कई तरह के ख्याल उभर रहे थे |

मधुरा कई दिनों तक इस उधेड़बुन में पड़ी रही कि उसे क्या करना चाहिए | अगर सौम्या से उसके साथ हुए धोखे के बारे में नहीं बताती है ; तो सहेली के साथ अन्याय होगा और अगर सब कुछ बता देती है तो उसका घर टूट जायेगा |

"मुझे तो समझ नहीं आता कि आप और सौम्या एक ही शहर के होते हुए एक दुसरे से इतने अलग कैसे हैं | आप इतनी समझदार हैं और आत्मनिर्भर भी | आपको अपना कुछ काम करना चाहिए | मेरी राजनीति में अच्छी पैठ है और आप चाहें तो ..." अब प्रदीप अक्सर मधुरा को फोन करता और उसके तारीफों की पुल बांधता | यह सिलसिला लगभग तीन महीनों तक चला |

फिर एक दिन......

"सुनिए, आज मेरे बचपन की सहेली घर आ रही है | वैसे तो आपको अपने काम के अलावे कुछ सूझता ही नहीं है ; पर आज हो सके तो जरा समय से घर आ जाइएगा" सौम्या का प्रदीप से इतना कहना था की प्रदीप घर से निकलते हुए अचानक से रुक गया |

"अच्छा, कौन सी सहेली आ रही है" ऐसा पूछते हुए प्रदीप को जवाब लगभग पता था |

"मधुरा" कहते हुए सौम्या ने घर का दरवाजा बंद किया |

प्रदीप कुछ सोचता हुआ पार्किंग में आकर अपनी लिमोजिन में बैठ गया | मन की वीणा ने राग विहाग का तान छेड़ दिया |

मधुरा का सामना ऐसे सच से हुआ था जिसे वह चाहकर भी नहीं भुला पा रही थी | सौम्या के घर जाने से पहले मधुरा ने अपनी माँ को सारी बातें बता दी और साथ ही उनसे यह वादा भी लिया कि वह इस सच को किसी और से सांझा नहीं करेगी |

"देखो, पैसेवाला है, तभी तो एक साथ दो परिवारों का निर्वाह कर पा रहा है; वरना इस कमरतोड़ मंहगाई में तो एक परिवार भी संभालना मुश्किल होता है | सौम्या को तो बड़े आराम से रखा है | उसे किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं | अब उसे सब कुछ पता भी चल जाए, तो वह बेचारी जायेगी कहाँ ? " अपनी माँ के मुँह से ऐसा सुनकर मधुरा चौंक गयी |

माँ ने आगे जो कहा, वो और भी चौंकानेवाली बात थी |

"सौम्या की माँ को शादी के बाद यह पता चल चुका था कि यह शादी प्रदीप की मर्ज़ी के वगैर हुई है | इस बात का किसी को पता ना चलता अगर शादी के आठवें दिन रात्री भोज के समय घर पर पुलिस ना आ धमकती | रागिनी ने आत्महत्या की कोशिश की थी और उसे किसी प्रकार बचाया जा सका था | उसने अपने बयान में पुलिस को सब कुछ बता दिया था | उस रोज़ प्रदीप पुलिस के साथ अस्पताल तक गया था और देर रात गए घर लौटा | घर लौटने पर सौम्या के माता-पिता, जो वहाँ रात्री-भोज में शामिल होने आये थे, उनसे कहा गया कि कोई लड़की थी जो प्रदीप से बहुत प्यार करती थी | प्रदीप ने उससे शादी के लिए इंकार कर दिया, तो आत्महत्या की कोशिश की | प्रदीप का अब उस लड़की से कुछ नहीं लेना देना है और पुलिस ने भी उस लड़की को समझा दिया है | सौम्या के पिता तो मान भी चुके थे कि वह लड़की ही प्रदीप के पैसों पर फ़िदा होकर उसके गले पड़ना चाह रही थी ; पर सौम्या की माँ....उसे सच्चाई का लगभग अनुमान हो चला था | सौम्या की शादी के एक महीने बाद जब वह हमारे घर आई थी , तब इस घटना का ज़िक्र किया था | उन्हें शायद लगा था कि सारा मसला सुलझ गया था | बहरहाल सौम्या अपनी दुनिया में खुश है और वो लड़की, रागिनी भी | काबिल कहना पड़ेगा प्रदीप को ........एक साथ दो-दो घर .............." माँ शायद आगे भी कुछ कहना चाहती थी; पर अब सब कुछ मधुरा के बर्दाश्त के बाहर हो गया था |

"अगर उसके माता-पिता को सब मालूम था, तो उन्होंने कुछ क्यूँ नहीं किया? क्या उन्हें भी इस बात पर लड़के में काबिलियत ही दिखी थी कि एक साथ दो-दो स्त्रियों का भरण पोषण कर सकता है ? क्या सौम्या उनके सर पर एक बोझ थी , जिसके उतर जाने पर वह इतना खुश थे कि उन्हें फर्क नहीं पड़ता इन सारी बातों से ? या फिर प्रदीप का पैसेवाला होना इस सभी चीज़ों के मायने बदल देता है ?" माधुरी अभी  अपने आप से ऐसे ही कुछ चंद सवाल पूछ रही थी कि उसके फोन की घंटी बजी |

"हाँ सौम्या, मैं चार बजे तक तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगी" कहते हुए मधुरा ने फ़ोन रखा |

मधुरा तैयार होकर सौम्या के घर के लिए निकल पड़ती है| वह खुद भी नहीं जानती कि वह सौम्या का सामना कैसे करेगी| डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद मधुरा सौम्या के घर पहुँचती है| सौम्या अपनी सोसाइटी के बाहर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी| दोनों सहेलियां गले मिलती हैं और फिर सौम्या मधुरा को अपने घर ले आती है| घर आते ही सौम्या मधुरा को अपना पूरा घर दिखाती है| उसके लिए डुप्लेक्स घर बहुत मायने रखता था| सौम्या के चेहरे से झलकती ख़ुशी ने मधुरा के बैचैन मन को कुछ हद तक शांत किया|

"जानती हो मधुरा, आज तक का रिकार्ड है कि प्रदीप कभी मेरे किसी परिचित से मिलने दफ्तर का काम छोड़कर नहीं आये; पर तुम स्पेशल हो न ............" सौम्या इठलाते हुए कहती है| 

प्रदीप आधे घंटे से खड़ा है | शायद उसके अन्दर का अपराधबोध उसे बैठने की इज़ाज़त नहीं दे रहा है |  मधुरा उसकी असहजता  समझ सकती है| मधुरा की इल्तिजा पर प्रदीप उसके पास ही कुर्सी पर बैठ जाता है| सबने साथ बैठ चाय नाश्ता किया और फिर मुलाक़ात को अंजाम तक पहुंचाने का वक़्त आया| मुलाक़ात जो थी वीथोवन की आठवीं सिम्फनी की तरह संक्षिप्त!

 मधुरा को छोड़ने सौम्या पार्किंग तक आती है और मधुरा एक बनावटी मुस्कान के साथ गाड़ी में जा बैठती है | मधुरा मन ही मन तय करती है कि अब वह अपनी सहेली के घर नही आयेगी क्यूंकि सौम्या जी रही है एक झूठ, जो उसका खूबसूरत सच है या यूँ कहें उसकी शादी का सफ़ेद झूठ, जो सच है | अपने दिल पर हजारों सवाल का बोझ लिए मधुरा अस्सी की स्पीड से कार ड्राइव कर रही है कि तभी उसका ध्यान खींचता है  कार की स्टीरियो में चल रहा गाना "क्या मिलिए ऐसे लोगो से, जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आये, असली सूरत छुपी रहे"|

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