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समय बह गया किसी तेज नदी की तरह
और हम जो थे अलग कश्तियों पर सवार
जा पहुँचे नदी के दो विपरीत किनारों पर
कि अचानक देखती हूँ जोड़ दिया है वक़्त ने
एक और रंगीन गुब्बारा तुम्हारी उम्र में
इस पार लगा है स्मृतियों का हाट
और मैं खरीददार एकांत के मेले में
उठा लिया दीया शुभकामनाओं का
बहा दिया नदी में कर प्रज्वलित
सुनो, उम्र मत बढ़ाना अबके बरस
बड़े हो जाना सचमुच के
---सुलोचना वर्मा------
समय बह गया किसी तेज नदी की तरह
और हम जो थे अलग कश्तियों पर सवार
जा पहुँचे नदी के दो विपरीत किनारों पर
कि अचानक देखती हूँ जोड़ दिया है वक़्त ने
एक और रंगीन गुब्बारा तुम्हारी उम्र में
इस पार लगा है स्मृतियों का हाट
और मैं खरीददार एकांत के मेले में
उठा लिया दीया शुभकामनाओं का
बहा दिया नदी में कर प्रज्वलित
सुनो, उम्र मत बढ़ाना अबके बरस
बड़े हो जाना सचमुच के
---सुलोचना वर्मा------
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