पंख नही है उसके पर
परिंदो सा हौसला है
संघर्ष में भी गाती है
वो शहीद की विधवा है
कल चाँद की रजनी थी
आज दिनकर की दिवा है
नही हारती परिस्थितियों से
वो शहीद की विधवा है
अपनी पीड़ा के झंझावात में
दृढ़ निश्चय ही उसकी दवा है
धीरज है, अदम्य साहस है
वो शहीद की विधवा है
जब लेकर आती घर दाना
बनती बच्चों की विजेता है
दुख में भी मुस्कुराती है
वो शहीद की विधवा है
मिला सारा नभ परिंदों को
पर सत्य ये कड़वा है
रहती है छोटे घर में
वो शहीद की विधवा है
पंछी का रंगीन वसन पर
धरती पर विपरीत हवा है
लिपटी है सफेद कफ़न में
वो शहीद की विधवा है
सुलोचना वर्मा
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