Sunday, December 4, 2016

वक्त-2

-------------------------
हम जी सकते थे जिंदगी  
देखते हुए एक-दूसरे की आँखों में 
पर देखा हमने परस्पर को 
जमानेवालों की नजरों से 
अपनी आँखें होते हुए भी 

बड़ा ही बेदर्द और जालिम निकला वक़्त 
वक्त न दिया कमबख्त ने, हमे लील गया 


No comments:

Post a Comment