Friday, February 14, 2014

मेरा चेतन कहता है


नहीं मिलते इस जड़ के तेवर मेरे चेतन से
ठन गयी है इन दोनों की आपस में
अजब सी उथल पुथल मची है मेरे अन्दर
साज़िश लहू बन दौड़ रही मेरे रग में


मेरा चेतन कहता है - चलो बेल का पेड़ लगायें
बूँद बूँद उसे सींचे निर्मल जल से
करे उत्सर्ग किसी शिवलिंग पर उसके पत्ते
और उसका अमृत  फल गरीबों में बांटें


बुदबुदाता है जड़ सुनकर चेतन की बातें
लगेंगे पुरे पंद्रह वर्ष बेल पर फल आने में
क्यूँ पेड़ सींचने में वक़्त करना है जाया
इससे तो कहीं भला है मर कर जल जाने में


इतराता है जड़ लिए कुटिल मुस्कान अधरों पर
सोचता क्या मैंने कभी गणित पढ़ा जीवन में
मुझसे तो  लम्बी मेरी पीड़ा की उम्र है 
क्या लग पायेगा इस चक्र, फल जीवन के वृक्ष में


खिलखिलाकर हँस देता है मेरा चेतन तब
कहता है हाथ धर जड़ के कंधे पर
नहीं देखा है मौत को मैंने अब तक
रख दो बीमारियों को वक़्त के चरखे पर


ये मेरे निर्धारित कार्यक्रम हैं , पुरे होकर रहेंगे
नहीं छुपेंगे जड़ की शिथिलता के बादलों में
मैं चेतन हूँ, अनंत हूँ , अमर हूँ गतिमान
क्या बाँध पायेगा कोई अशरीरी को साँकलों में


सुलोचना वर्मा


 

2 comments:

  1. स्व-समर्पण तन-मन अर्पण
    जीवन का विराम कंहाँ है ..
    तुम सरस मन आह्लादित
    सुकीर्त सुलोचना
    पार्थिव प्रमाण कहां है ...
    तुम तृप्त अनुगामिनी
    निश्छल बहती धारा
    तुम बिन त्राण कहाँ है ..
    तुम अनंत आकाश ध्रव तारा
    मैं निशा निकेतन
    तुम बिन विराम कहाँ है ...????

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  2. बेहतरीन
    प्यारी सी अभिव्यक्ति :)

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