नहीं मिलते इस जड़ के तेवर मेरे चेतन से
ठन गयी है इन दोनों की आपस में
अजब सी उथल पुथल मची है मेरे अन्दर
साज़िश लहू बन दौड़ रही मेरे रग में
मेरा चेतन कहता है - चलो बेल का पेड़ लगायें
बूँद बूँद उसे सींचे निर्मल जल से
करे उत्सर्ग किसी शिवलिंग पर उसके पत्ते
और उसका अमृत फल गरीबों में बांटें
बुदबुदाता है जड़ सुनकर चेतन की बातें
लगेंगे पुरे पंद्रह वर्ष बेल पर फल आने में
क्यूँ पेड़ सींचने में वक़्त करना है जाया
इससे तो कहीं भला है मर कर जल जाने में
इतराता है जड़ लिए कुटिल मुस्कान अधरों पर
सोचता क्या मैंने कभी गणित पढ़ा जीवन में
मुझसे तो लम्बी मेरी पीड़ा की उम्र है
क्या लग पायेगा इस चक्र, फल जीवन के वृक्ष में
खिलखिलाकर हँस देता है मेरा चेतन तब
कहता है हाथ धर जड़ के कंधे पर
नहीं देखा है मौत को मैंने अब तक
रख दो बीमारियों को वक़्त के चरखे पर
ये मेरे निर्धारित कार्यक्रम हैं , पुरे होकर रहेंगे
नहीं छुपेंगे जड़ की शिथिलता के बादलों में
मैं चेतन हूँ, अनंत हूँ , अमर हूँ गतिमान
क्या बाँध पायेगा कोई अशरीरी को साँकलों में
सुलोचना वर्मा
स्व-समर्पण तन-मन अर्पण
ReplyDeleteजीवन का विराम कंहाँ है ..
तुम सरस मन आह्लादित
सुकीर्त सुलोचना
पार्थिव प्रमाण कहां है ...
तुम तृप्त अनुगामिनी
निश्छल बहती धारा
तुम बिन त्राण कहाँ है ..
तुम अनंत आकाश ध्रव तारा
मैं निशा निकेतन
तुम बिन विराम कहाँ है ...????
बेहतरीन
ReplyDeleteप्यारी सी अभिव्यक्ति :)