---------
रचा गया प्रपंच
हुआ कार्यान्वित छल
लुट गयी अस्मिता
तुम ध्यानमग्न रहे
उठे कई प्रश्न
लगाये गए लांछन
श्रापित हुई भक्ति
तुम ध्यानमग्न रहे
हुआ घोर अन्याय
दिया गया अभिशाप
बन गयी नारी पत्थर
तुम ध्यानमग्न रहे
तज अर्धनारीश्वर स्वरुप
कर विस्मृत नारी पीड़ा
क्यूँ सति वेदना भूल
तुम ध्यानमग्न रहे ?
सतयुग से त्रेतायुग
शीला धर मौनव्रत
रही मुक्ति प्रतीक्षारत
तुम ध्यानमग्न रहे ?
हे त्रिकालदर्शी "पुरुष"
देवों के देव होकर भी
क्यूँ "भोले" मात्र बनकर
तुम ध्यानमग्न रहे ?
सुलोचना वर्मा
रचा गया प्रपंच
हुआ कार्यान्वित छल
लुट गयी अस्मिता
तुम ध्यानमग्न रहे
उठे कई प्रश्न
लगाये गए लांछन
श्रापित हुई भक्ति
तुम ध्यानमग्न रहे
हुआ घोर अन्याय
दिया गया अभिशाप
बन गयी नारी पत्थर
तुम ध्यानमग्न रहे
तज अर्धनारीश्वर स्वरुप
कर विस्मृत नारी पीड़ा
क्यूँ सति वेदना भूल
तुम ध्यानमग्न रहे ?
सतयुग से त्रेतायुग
शीला धर मौनव्रत
रही मुक्ति प्रतीक्षारत
तुम ध्यानमग्न रहे ?
हे त्रिकालदर्शी "पुरुष"
देवों के देव होकर भी
क्यूँ "भोले" मात्र बनकर
तुम ध्यानमग्न रहे ?
सुलोचना वर्मा
No comments:
Post a Comment