Thursday, December 12, 2013

दरबान

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घुमाने पालतू कुत्ते को मैडम जी बाहर आई
गले में घंटी कुत्ते के, पीठ पर ऊनी रज़ाई
गली में घूमते आवारा कुत्तों पर आपत्ति जतलाई
देख ना पाई उनको लावारिश, पीठ उनकी सहलाई

दरबान से पुछा, क्या आज इन कुत्तों ने कुछ है खाया
मिला उत्तर "ड्यूटी मेरी रात की है, सो देख नही मैं पाया"
चिल्लाया, सोसायटी के सभी लोगों को क्या कुछ नही सुनाया
बूढ़े उस दरबान के सामने मानवता का गीत गुनगुनाया

दरबान की बूढ़ी हड्डियाँ ठंड में काँप रही थी
किसी आती हुई विपत्ति को दूर से ही भाँप रही थी
उधर दरबान के सूपरवाइज़र की आँखें परिस्थिति को माप रही थी
एक मैडम थी कि कुत्तों के ही नाम की माला जाप रही थी

देखकर कुत्तों को ज़मीन पर लोटता मैडम जी बौखलाई
कहा दरबान से ज़रा इधर ही  खड़े रहना  तुम भाई
खुश हुआ जो देखा मैडम कंबल लेकर आई
सोचा आख़िर इस बुढ्ढे पर मैडम को दया है आई

देकर लाख दुआएं दिल से कहा धन्य हो माई
कहा मैडम ने देखो मैं ये कुत्तों के लिए हूँ लाई
इतना कहकर मैडम ने वो कंबल वहीं बिछायी 
ये देखते ही बूढ़े दरबान की आँखें डबडबायी

कहा मैडम ने देखो तुम ये कंबल बिछाना रोज़
सुबह शाम मैं खुद ही आकर दूँगी इनको भोज
देखकर दरबान कुत्तों को मिलता इतना सुंदर डोज़
सोच रहा था बेचारा क्या ले दूसरी नौकरी खोज

कहा हम जैसों से इन अमीरों का कोई वास्ता नही
मेहनत के अलावे और कोई शायद रास्ता नही
खाने में सैंडविच, बर्गर, नूडल और पास्ता नही
सुखी रोटी रात में और सुबह को नाश्ता नही

बूढ़े दरबान ने खुद को निहारा
ज़िस्म पर कंपनी की वर्दी और
पाँव में फटा हुआ काला जूता है
देखा आसमान की तरफ उसने
कहा, क्यूँ बनाया मुझे इंसान
मुझसे भाग्यवान तो ये कुत्ता है

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