Thursday, December 19, 2013

ख्वाब


कहती है बिटिया, माँ, चलो ख्वाब ख्वाब खेलें
आसमान की रेड़ी से हम वो माहताब ले लें
सुनहरी परियों से कहानी की किताब ले लें
बर्फ़ीली पहाड़ी के पीछे से, आफताब ठेलें
कहती है बिटिया, माँ, चलो ख्वाब ख्वाब खेलें


अनजानी है वो दुनिया, कौन कैसे वहम पाले
बंद कर आँखों को, पलकों का नक़ाब डालें
अगर चले पैदल तो, पैरों में पड़ जाएँगे छाले
अपने ख़याली घोड़े पर पहले  हम रकाब डालें
कहती है बिटिया, माँ, चलो ख्वाब ख्वाब खेलें


ये ख्वाब है, क्यूँ बंदिशो की इसमे हम अज़ाब डालें
चलो आरज़ू के बीज पर आज  हौसले का आब डालें
उतर कर लोगों के दिल में हम उनका पयाब पा लें
और ज़िंदगी की तिश्नगि पर ख्वाबों का चनाब डालें
कहती है बिटिया माँ, चलो ख्वाब ख्वाब खेलें


सुलोचना वर्मा

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