औरतें अन्नपूर्णा सी लगती हैं
देहात के भंसा घरों से लेकर
शहरों के किचन तक
सीता की साक्षात प्रतिमा हैं
तुलसी पर जलाती दीया बाती से लेकर
सत्संग के प्रवचन तक
आती है नज़र पार्वती का स्वरूप
पितृ गृह त्याग से लेकर
विवाह के वचन तक
कहलाती है उन्मादी
चाँद पर जाने की सोच से लेकर
दूरदर्शिता के मंचन तक
करार दी जाती है अहंकारी
अपने पैरों पर खड़ा होने से लेकर
भविष्य के रचन तक
बन जाती है चरित्रहीन
स्वेक्षा से किसी को समर्पित होने से लेकर
सख़ाओं के सचन तक
सुलोचना वर्मा
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