Friday, December 20, 2013

औरतें


औरतें अन्नपूर्णा सी लगती हैं
देहात के भंसा घरों से लेकर
शहरों के किचन तक


सीता की साक्षात प्रतिमा हैं
तुलसी पर जलाती दीया बाती से लेकर
सत्संग के प्रवचन तक


आती है नज़र पार्वती का स्वरूप
पितृ गृह त्याग से लेकर
विवाह के वचन तक


कहलाती है उन्मादी
चाँद पर जाने की सोच से लेकर
दूरदर्शिता के मंचन तक


करार दी जाती है अहंकारी
अपने पैरों पर खड़ा होने से लेकर
भविष्य के रचन तक


बन जाती है चरित्रहीन
स्वेक्षा से किसी को समर्पित होने से लेकर
सख़ाओं के सचन तक

सुलोचना वर्मा

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