हर एक शख्श आपसे जुड़ा नही होता
फिर भी हर कोई तो बुरा नही होता
मिल लेती हूँ हर किसी से हँस के की
चंद लोगों से ही महफ़िल पूरा नही होता
हर रिश्ता जीवन में कुछ नया लाया है
ना सोचो की समय किया मुफ़्त में जाया है
उधर दामिनी को गुज़रे बरस बीत आया है
आज इसी जहाँ में मैने मानस पिता पाया है
सुलोचना वर्मा
फिर भी हर कोई तो बुरा नही होता
मिल लेती हूँ हर किसी से हँस के की
चंद लोगों से ही महफ़िल पूरा नही होता
हर रिश्ता जीवन में कुछ नया लाया है
ना सोचो की समय किया मुफ़्त में जाया है
उधर दामिनी को गुज़रे बरस बीत आया है
आज इसी जहाँ में मैने मानस पिता पाया है
सुलोचना वर्मा
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