Saturday, December 7, 2013

दिनकर

मेरी निशि की दीपशिखा
कुछ इस प्रकार प्रतीक्षारत है
दिनकर की एक दृष्टि की
ज्यूँ बाँस पर टँगे हुए दीपक
तकते हैं आकाश को
पंचगंगा की घाट पर


जानती हूँ भस्म कर देगी
वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
जब होगा प्रभात का आगमन

स्निग्ध सोंदर्य  के साथ
शंखनाद होगा और घंटियाँ बज उठेंगी
मन मंदिर के कपाट पर


मद्धिम सी स्वर-लहरियां करेंगी आह्लादित प्राण
कर विसर्जित निज उर को प्रेम-धारा में
पंचतत्व में विलीन हो जाएगी बाती
और मेरा अस्ताचलगामी सूरज
क्रमशः अस्त होगा
यामिनी के ललाट पर


 सुलोचना वर्मा

No comments:

Post a Comment