Wednesday, February 8, 2017

शिल्प

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खड़ा रहता है पहाड़ सर उठाये 
कि धरती सह लेती है उसके हिस्से का दर्द 
उसे उठाये हुए निरंतर अपनी गोद में 

भय नहीं जानता पहाड़ 
कि भय स्वभाव है टूटने का 
टूटकर बिखर जाने का पत्थरों में 

पहाड़ अगर पहाड़ है
तो पत्थर से ही गढ़े जाते हैं शिल्प 
शिल्प अगर शिल्प  है 
तो सारा संसार है उसका ठिकाना 

तो प्रेम ?

पहले पहाड़ था प्रेम, 
फिर तो पत्थर भी नहीं रहा 
अब शिल्प बन बिकता है बाजार में !

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