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1.
मैं नदी हो जाना चाहती थी
कि मुझे तुम समुद्र दिखते थे
घुलकर तुम्हारे जल में होना चाहती थी एक
और प्रेम?
था बहती हुई नदी के मानिंद प्रेम
जो प्रेम में पड़ बहना गया भूल
प्रेम को घेरे बना रहा ताल चंद रोज़
बचा प्रेम की समाधि पर रेत ही मूल
अब चुभता है आँखों में, उड़ता है जब धूल !
2.
मैं तुम्हारी जमीन हो जाना चाहती थी
जहाँ तुम बोते बीज अपनी पसंद के
और मैं हरी हो जाती, लहलहाती
और प्रेम?
प्रेम की धरती हमेशा उर्वराशील थी
तुमने खेती की उपेक्षा के नील की
3.
मैं हो जाना चाहती थी रात
जहाँ तुम बन जुगनू टिमटिमाते
मेरी सुन्दरता में लगाते चार चाँद
और प्रेम?
प्रेम की हुई रात, चाँदनी छायी
बस यही बात जुगनू को न भायी
4.
मैं चाहती थी कि तुम बन पाते मेरा अंतिम निवास
जहाँ मैं कर पाती विश्राम हो निश्चिंत सांझ ढले
और तुम जुटा पाते मेरे लिए शांति का बतास
और प्रेम?
प्रेम बतास था, उड़ गया
मेरा अंतिम निवास उजड़ गया
1.
मैं नदी हो जाना चाहती थी
कि मुझे तुम समुद्र दिखते थे
घुलकर तुम्हारे जल में होना चाहती थी एक
और प्रेम?
था बहती हुई नदी के मानिंद प्रेम
जो प्रेम में पड़ बहना गया भूल
प्रेम को घेरे बना रहा ताल चंद रोज़
बचा प्रेम की समाधि पर रेत ही मूल
अब चुभता है आँखों में, उड़ता है जब धूल !
2.
मैं तुम्हारी जमीन हो जाना चाहती थी
जहाँ तुम बोते बीज अपनी पसंद के
और मैं हरी हो जाती, लहलहाती
और प्रेम?
प्रेम की धरती हमेशा उर्वराशील थी
तुमने खेती की उपेक्षा के नील की
3.
मैं हो जाना चाहती थी रात
जहाँ तुम बन जुगनू टिमटिमाते
मेरी सुन्दरता में लगाते चार चाँद
और प्रेम?
प्रेम की हुई रात, चाँदनी छायी
बस यही बात जुगनू को न भायी
4.
मैं चाहती थी कि तुम बन पाते मेरा अंतिम निवास
जहाँ मैं कर पाती विश्राम हो निश्चिंत सांझ ढले
और तुम जुटा पाते मेरे लिए शांति का बतास
और प्रेम?
प्रेम बतास था, उड़ गया
मेरा अंतिम निवास उजड़ गया
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